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मुनिजी पुण्यविजयजीना सौजन्यथी मने जेसलमेरनी ज्ञानयात्रा करवानो अवसर मळ्यो त्यारे त्यांना किल्लाना भंडारमा ‘षष्टिशतक' ना एक बालावबोधनी २४ पत्रनी पोथी जोवामां आवी हती. एमां कानू नाम नथी, पण आ ग्रन्थमा समावेला उपर्युक्त त्रणे बालावबोधोथी ते भिन्न छे. षष्ठीना मारु-गुर्जर अनुग ' रहइं' अने ' हूई 'ने स्थाने अहीं मारवाडी प्रत्यय 'रउ' ( अर्वाचीन 'रो'), 'री' मळे छे, अने ए त्रणे बालावबोध करतां आनी रचना केटलाक दसका पछीथी थई होवानो तर्क थाय छे. लिपि उपरथी पोथी विक्रमना सत्तरमा सैकामां नकल करायेली जणाय छे. आ पुस्तकमां प्रकाशित थयेला बालावबोधो साथे तुलना माटे एनो आदि-अंत अहीं उतारुं छु. आदि.. प्रणम्य मारुदेवावं जिनं निर्जितमन्मथम् ।
करोमि षष्टिशतके वार्ता सौख्यावबोधिनीम् ॥ ... अरिहं देवो सुगुरु सुद्धं धम्मं च पंचनवकारो।
धन्नाण कयत्थाणं निरंतरं वसइ हिययम्मि ॥१॥ इये गाथानइ विषइ च्यार बोल सारभूत छइ ते कहीइ । किहा ते च्यार बोल । अरिहं देवो कहतां अरिहंत देव । सुगुरु क० तीर्थकररी आज्ञाई करी सहित जे गुरू २। सुद्धं धम्मं च क० सूधउ वीतरागनउ भाष्यउ धर्मइ, पंचनवकारो क० पांच परमेष्टिनमस्कार । ए च्यारेइ बोल धन्नाण क. जे धन्य भाग्यवंत, कयत्थाणं क० कीध्या छइ साध्या छइ जीए अर्थ एहवा जे जीव तियांरइ हीयानइ विषइ निरंतरं क० निरंतर सदा सर्वदा ए च्यारेइ वाना वसइ क० वसइ ।
हिव बि गाहाइ आपणा आत्मानइ सीख कहइ छइ । अंत___ इणइ प्रकारइ भंडारी नेमिचंद क० नेमिचंद्र भंडारीयइ साजण तणइ पुत्रइ श्रीजिनेश्वरसूरि तणइ पिताइ रइयाउ क० नवी जोडी केतली