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- षष्टिशतक प्रकरण
वीतराग मानी तेहनी आज्ञा पडिवजीनइ पुणो वि० वली इतर देव बीजा संसारिक देव नमइ मिथ्यात्त्वरूपिइ सन्निपात रोगिई करी प्रसिया अचेत जाणिवा । तेहहूई कुण वैद्य हुई ? तेहहूई. कुण साजा करई ? जे अमृत पीईनइं विस पीइं तेहहूइं सिउं प्रतिकार 5हुइ ? ॥ १४९॥ .. . .. [जि.] जे पुरुष जिनेन्द्र मानी पछइ इतर देव हरिहरादिक प्रणमई तउ मिथ्यात्त्वरूपिउ संनिपातक रोग तिणिइं घत्थ ग्रस्या व्याप्या हूंता ताण तेहां पुरुषहंहूई कुउण वैद्य ह ? अपि तु न कोई ॥ १४९॥ . 10. [मे.] जे सर्वज्ञ साचउ देव मानी तेहनी आज्ञा पडिवजीनइ इतर बीजा. संसारिक देवनइं मानइं ते मिथ्यात्वरूपीइं संनिपाति रोगि ग्रस्या हूंता अचेत हुई । तेहनई कउण वैद्य साजा करइ ? ॥ १४९॥
- [सो.] वली सम्यक्त्वइ जि ऊपरि कहइ छइ ।
[जि.] एक श्रावक गुरु नानाविध चैत्यद्रव्य माहोमाहि न 15वेचावइं।
एगों सुगुरू एगा वि सावगा चेईयाणि विविहाणि । तत्थ य जं जिणदव्वं परुप्परं तं न विचंति ॥१५०॥
[सो.] एगो० गुरु एकइ जि अनइ श्रावक एकइ जि छइं । पुण चैत्य देहरां जूआं जूआं अनेरा अनेरानां कराव्यां छइ । तिहां जे २०द्रव्य छइ ते परस्परिई न वेचई। पेला देहरानु उलिइ देहरइ, ओल्या
देहरानु पेलइ देहरइ न वेचइ । मनि भेद आणइ ॥ १५० ॥ . १ संनिपाति. २ आ गाथानी प्रथम पंक्ति जि. मां नथी. ३ अनेरा. ४ 'पेला देहरानु...न वेचइ' एटलो पाठ सो.नी बीजी प्रतमांथी पड़ी गयो छे.