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________________ aur बालावबोध सहित [ सो.] जइ० अहो भव्य जीव ! तूं जउ इसिउं जाणं छं'जिननाथ श्रीसर्वज्ञ लोकिक आचार थिकउ विपक्षभूत अलग छन् । लोकाचार जूउ अनइ श्रीसर्वज्ञनउ' आचार जूउ छइ ।' ता तं तं० तेह्भणी तुं ते श्रीवीतरागनई मानतउ इंतर लोकनउ आचार धर्म भणी कांई मानअं छअं ? जे ' लोगविरुद्धच्चाओ' इसिउं कहिउं छइ 5 प्रसिद्ध लोक आचार धर्म सिउं अविरुद्ध अणकरतां लोक पाप ऊपार्जइ । ते छांटा' आभोषादिक करिवुं । पणि तेहइ धर्म भणी कांई 1 न मानिव ॥ १४८ ॥ १:४९ [जि.] लोकाचारनइ पक्खड़ हूउ हूंतउ मानतउ जड़ जिननाथ जाणइ, मनमाहि धरइ, तर पछइ तूं ते जिन मानतउ हूंत लोकाचार कांइं मानइ ? ।। १४८ ॥ [मे. ] अरे जीव ! जउ तउं इम जाणइ छइ जि ' जगन्नाथ वीतराग लोकना आचारनइ विपक्षभूत अलग छ । लोकाचार जूउ, वीतरागनउ आचार जूउ । ' तउ तउं वीतरागनई मानतुइ हूंतउ लोक आचार धर्म भणी काई मानइ ? || १४८ ॥ 15 [सो.] वली सम्यक्त्वइ जि ऊपरि ४ गाह कहइ छ । [जि.] अथ जिन मानीनई पछइ अन्य देव मानइ तेह उद्दिसी कहइ | जे मन्नेव जिणंद पुणो वि पणमंति इअरदेवाणं । मिच्छत्तसन्निवायगघत्थाणं ताण को विज्जो ॥ १४९ ॥ २० [ सो.] जे मन्नेवि० जे जिनेन्द्र श्रीसर्वज्ञ साच देव १ श्रीसर्वज्ञआचार. २ मानई छई. ३ छाट. ४ आश्री. ५ जि. 'सन्निवाइग, मे. संनिवार्य.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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