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________________ त्रण बालावबोध सहित [जि.] अथ जिनधर्म तणउ जाणिवानउ प्रकार कहइ । जिणधम्म दुन्नेअं अइसयनाणीहि नज्जए' सम्म। तह वि हु समयहिइए ववहारजएण नायव्वं ॥१३७॥ [सो.] जिण जिनधर्म जाणतां गाढइउ दोहिलउ छइ । . अइसय० अतिशयज्ञानी जे मनोगत भाव जाणइ, सम्यग् एहे जि.5 जाणइ जं 'एहमाहि धर्म छइ ।' तह विहु० तऊ बीजे छद्मस्थे सिद्धांतमाहि जिसी परीक्षा कही छइ तिसी स्थितिई करी व्यवहारनयई धर्म जाणी लेवउ । सर्वथा अनास्था न करिवी ॥ १३७॥ . [जि.] जिनधर्म दुर्जेय जाणतां दुहेलउ, पुण अतिशय ज्ञानवंत पुरुषे सम्भं सम्यक् प्रकारि साचउं जाणीइ । तह बि तउहीइ.० निश्चई समयहिइए सिद्धांतनी स्थितिइं अनई क्वहारनएण लोकव्यवहारनइ न्यायि करी लोके जिनधर्म जाणिवउ । 'अहो सिद्धांतनी रीतिइं धर्म जाणीइ ते प्रमाण, पुण लोकव्यवहारइं धर्म जाणीइ ते किम प्रमाण ? ' इसु म कहे । ' लोगविरुद्धच्चाओ' इसा सिद्धांतना वचनइतउ । जिम सिद्धांतस्थिति प्रमाण तिम लोकव्यवहारई प्रमाण । तथा:5 चोक्तंलोक म रूसउ, लोक जि तूसउ, लोक लेई परमारथि पइसउ । . जइ तूं जोगी त्रिभुवनसार, तइ तू न मेल्हे लोकाचार ॥ १३७॥ [मे.] जिनधर्म जाणतां गाढउं दोहिलउं। जे अतिशयवंत ज्ञानी हुई तेह जि सम्यक्त्व जाणीई जु 'एह माहि धर्म छइ ।'30 तथापि व्यवहारनइ ज्ञाइ सिद्धांतनी परीक्षाइ सम्यग् करी जाणी लेवउ । अनास्था न करिवी ॥ १३७॥ १ मे. निजए. २ मे. ह. ३ समयठिईए, जि. मे. समय ठिईए. ४ गाढउं. ५ एह. ६ ‘नयई करी. १८
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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