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षष्टिशतक प्रकरण
बीहामणा अरण्यमाहि' भमइं। असंख्यातउ काल नवनवे भवांतरे रुलइ । तेह भणी उत्सूत्रप्ररूपणा विरूई । यत उक्तं श्रीवीरस्तुती
अहह सयलन्नपावेहिं वितहपन्नवणमणुमवि दुरंतं । जं मरिइभवअज्जिअदुक्कयअवसेसलेसवसा ॥ सुरथुयगुणो वि तित्थंकरो वि तिहुअणअतुल्लमल्लो वि । गोवाईहि वि बहुसो कयत्थिओ तिजयपहु ! तं सि ॥ थीगोबंभणभूणंतगा वि केवि इह दढपहाराई ।
बहुपावा वि पसिद्धा सिद्धा किर तम्मि चेव भवे ॥ १२२ ॥
[जि.] जंजिणि कारणि श्रीमहावीरदेवनउ जीव मरीचि1०नइ भवि, श्रीआदिनाथनउ पोत्रउ, श्रीभरतचक्रवर्तिनउ बेटउ मरीचि उस्लुत्तलेसदेसणओ ' अम्हई कन्हई कांई थोडउ धर्म छइ' इसुं उत्सूत्रनउ लबलेसना कहिवातउ अइभीमभवगहणे अतिरौद्र संसाररूपिउं गहन वन तेह माहि सागरोपमनी कोडाकोडि हिंडइ भमइ । ते उत्सूत्रनउं प्रमाण ॥ १२२ ॥ 15 [मे.] जे श्रीमहावीरदेव तणउ जीव मिरीचि नामिइं
उत्सूत्रनउ लेस एक तेहनी देसनाई करी एक कोडाकोडि सागरोपम भीम रौद्र संसाररूप वन गहनमाहि हीडिउ भमिउ ॥ १२२ ॥
[जि.] तेह जि उत्सूत्रभाषक भारेकर्मउ । इसुं बिहुँ गाथा प्रकासइ। 20 ता जे इमं पि वयणं वारंवारं सुणिन्तु समयम्मि । दोसेण अवगणित्ता उस्तुत्तपयाई सेवंति ॥१२३॥ १ माहाइ. २ जइ, जि. मे. जइ. ३. मुणित्तु, जि. मुणित्त.