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त्रण बालावबोध सहित
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ताण कहं जिणधम्मो कह नाणं कह दुहाण वेरग्गं । कूडाभिमाणपंडियनडिया बुझंति नरयम्मि ॥१२४॥ . [सो.] ता० तु जइ एव्हं मरीचिनउं उत्सूत्र वचननउं स्वरूप वली वली सांभली दोषेण द्वेष लगइ ते अवगणीनइ जे उत्सूत्रपद सेवइ, श्रीसर्वज्ञनी आज्ञा विरुद्ध बोल कहइं थापई, जे 5 अभिमानना वाह्या एव्हं उत्सूत्र बोलइं. तेहहूई जिनधर्म किहाँ छइ ? अनइ दुःखनउ वैराग्य किहां छइ ? जेह भणी संसारनउ दुःख आंगमीनइ उत्सूत्र प्ररूपई छई। कुडाभिमाण० कूडा आपणा पंडितपणाना अभिमान तीणं करी नड्या वाह्या नरगइ जि माहि बूडई छई ॥१२३-२४॥
10 [जि.] ता तउ पच्छइ जइ किमइ समयम्मि सिद्धांतमाहे इमं पि वयणं उत्सूत्रवर्जन पूर्वोक्त वचन वार वार सुणी सांभलीनइं पछइ कूडइ दोषि करी सिद्धांतनउं वचन अवगणीनइं ते अधम उत्सूत्रपद सेवई । तेहां उत्सूत्रपदसेवणहारहूई कहं किमु जिनधर्म हुइ ? अपि तु न हुइ । अनइं तेहांहूई नाणं तत्त्वज्ञान किमु हुइ ? वली दुःखनउं:5 वैराग्य किमु हुइ ? अनइं ते अधम कूडउ अभिमान अहंकार तिणि : करी पंडित तेहे नटित नचाव्या हूंता नरकमाहे बूडई । कूडी पंडिताई करी नरगि पडइं ॥ १२३-२४ ॥
[मे.] तउ जइ किमइ मरीचिनउं उत्सूत्रवचननउं स्वरूप वार वार सांभलीनइ सिद्धांतमाहे कहिउं हूंतउं ते वचन द्वेष लगी० अवहेलीनइ उत्सूत्रनां पद स्थानक सेवई, सिद्धांत विरुद्ध बोलई, तीयांनइ जिनधर्म किहां, ज्ञान किहां ? तेहनइ दुक्खनउ वैराग्य किहां ?
१ मे. जिणधम्मं. २ एहुं. ३ अवगुणीनइ. ४ किहांइ. ५ बीजी प्रतमां आटलु वधारे छे—'अनइ ज्ञाननउं जाणिवउं किहां छइं.'