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. षष्टिशतक प्रकरण
को जाणइ परे लोए अत्थि वा नत्थि वा पुणो । ..जणेण सद्धिं होक्खामि इय बाले पगब्भई ॥ .
(उत्तराध्ययन सूत्र, अध्य. ५) सत्तमियाओ अन्ना अट्टमिया नत्थि नरयपुढवि त्ति इत्यादि 5 बोलतां मरी दुर्गतिइं जाई । यत उक्तं श्रीउपदेशमालायां
जस्स गुरुम्मि परिभवो साहूसु अणायरो खमा तुच्छा । .. . धम्मे य अणहिलासो अहिलासो दुग्गईए उ॥ (गा. २६३ )
[जि.] सुगुरुनइ जोगि स्वाधीन स्ववशि हूंतइ जे पुरुष शुद्ध निर्मल धर्मनउ अर्थ हु निश्चइं न निसुणंति सांभलई नही ते पुरुष 1०धेठा जाणिवा । किसा छइं ? दुष्ट सदोष निर्दय धृष्ट निर्लज चित्त मन
जेहनां हुइ ते दुष्टधृष्टचित्त कहीइ । वली किसा छइं ? संसारनउ भय तिणि.. करी रहित हूंता अतिसुभट छइं। ते परमार्थवृत्तिइं अभागिया ॥९३॥
[मे.] गुरुनइ योगि स्वाधीन मिलिइ हूंतइ जे इहां संसारमाहि 15सूधउ धर्मनउ अर्थ न सांभलई ते जीव दुष्टचित्त हूंता अति गाढा सुभट
जे संसार हूंता न बीहइ ॥९३ ॥
. [सो.] केतलाइ उत्तम गुरुनउ जोग' प्रामी मोक्ष लहइ', सघलाइ काज साधई । ए वात कहइ छइ ।। ... [जि.] अथ गुणवंतनउं स्वरूप बोलइ । 2० मुद्धकुलधम्मजा अवि गुणिणो नरमंति लिंति जिणदिक्खं। तत्तो वि य परमतत्तं तओ वि उवयारओ मुक्खं ॥९४॥
[सो.] सुद्ध० केतलाइ सुद्ध खरउ धर्म जिहां वापरइ एहइ कुलि ऊपनाइ हूंता गुरुनइ योगि विनय विवेक वैराग्यादिक गुणवंत
१ योग, २ लगइ, .