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________________ rr. बालावबोध सहित धर्म हुइ । आज्ञारहितपणई स्फुट' प्रकटपणई' अधर्म हुई । इअ मुणिऊण० इसिउं तत्त्व जाणीनइ वीतरागनी आज्ञाइं जि हे भव्य जीव' ! धर्म करउ ॥ ९२ ॥ ¿ [जि.] श्रीजिनाज्ञाइं जिनधर्म छन् । आज्ञारहितहूई स्फुट प्रकट अधर्म पापइ जि हुइ । इअ इसुं तत्त्व रहस्य मुणीनहं जाणीनइ अहो 5 भविक लोको ! जिननी आज्ञाई धर्म करउ ॥ १२ ॥ ९५ [ मे. ] जिननी आज्ञा पालतां धर्म हुइ । आज्ञारहित धर्म करतां स्फुट प्रकट अधर्मइ जि हुइ । इसउं जाणीनइ तत्त्व हइ जि जे जिननी आज्ञाई धर्म करउ ॥ ९२ ॥ [सो.] जे गुरुनइ जोगि छतइ धर्म न सांभलई ते अधर्मी Lo कही । ए वात कहइ छइ । [ जि. ] तत्त्वनाजानी बात कही घेठा पुरुषनी बात कहइ छइ । साही गुरुजोंगे जे न हु निसुणंति सुद्धधम्मत्थं । ते दुध चित्ता असुहडा भवभयविहूणा ॥ ९३ ॥ 15 [ सो.] साहीणे० सद्गुरुयोग कहइएकहूई स्वाधीन स्ववश्य आपणई भाग्यई करी लाउ छइ । तीणई छतई जे न हु० जे न सुणई न सांभलई खरा धर्मनउ विचार, सद्गुरु कन्हइ खरउ धर्म पूछी परीछी लिइं नही ते दुट्ठ० ते दुट्ठ धीरट्ठ' चित्त हूं सुभट संसारनई भई करी रहित ते धीरठपणई इम बोलई ढ . न मे दिट्ठे परे लोए चक्खुदिट्ठा इमा रई । हत्यागया इमे कामा कालिआ जे अणागया ॥ १ स्फट. २ प्रगटपणइ. ३ जीवउ. ४ योगि. ५ धीड. ६ हूंतां. - 20
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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