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षष्टिशतक प्रकरण
पूठि बीजा लोकना सहस्र लाख आवता हूता तीणंई धूलि ढिग करत दीउ । तीण लोके चींतविडं ' धूलिनउ ढग करी नाहीइं तउ घणउं पुन्य हुइ ।' सविहु लोके धूलिना ढिग कीधा । ते मूर्ख ब्राह्मण नदीमा हि नाही आपणइ अहिनाणि त्रिभाणु जोवा लागउ । देखइ तउ ढिगला s सहस्र लाख हुआ । त्रिभाणूं लाभ नही । इसिउ भाव । जे इम जाणइ सो य तत्तविक तत्त्व जाण कही ॥ ९१ ॥
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[ जि. ] शेष थाकतउ जिनाज्ञारहित धर्म न मानइ । वली लोकप्रवाहि तत्त्व नथी इसुं जे जाणइ सो य तत्तविऊ ते श्रावक तत्त्ववित् तत्त्वनउ जाण ॥ ९१ ॥
[मे. ] जे जे वचन वीतरागनी आज्ञाई सहित हुई तेहइ जि मान, सेष थाकत काई न मानई । इसउं जाण जि लोकप्रवाहमा हि तत्त्व कांई नथी इम जाण ते तत्त्व जाण ॥ ९१ ॥
IO
[ सो.] वली एह जिवात कहइ छइ । [ जि.] अथ जिनाज्ञास्वरूप कहइ ।
जिण आणा धम्मो आणारहिआण फुड अहम्मु त्ति । इअ मुणिऊण' तत्तं जिणआणाए कुणह धम्मं ॥ ९२ ॥
[सो.] जिणआणाए० वीतरागनी आज्ञाइं जिं चालतां
लागाउं । पूठि बीजा लोकना सहस्र लाष आवता हूंता तीणइ धूलिनउ ढिग करतउ दीठ । तीणई लोकिईं चींतविउं । धूलिनउ ढिग करी नाहीइ तउ घणउ पुण्य हु | सवे लोके धूलिना ढिग कीधा ।
१ ते तत्त्वनु. २ जि.नी प्रतमां जेम गाथानो उत्तरार्ध नथी तेम ते उपरना बालावबोधनी पण एक पंक्ति पडी गयेली छे. एटले गाथाना पूर्वार्धनो पूरो अनुवाद मळतो नथी. ३ मणिऊण, जि. मे. मुणिऊण य. ४ 'जि' नथी.