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, षष्टिशतक प्रकरण
मूंकीनइ सार प्रधान एकइ जि जिननी पूजा करइ। कांई ? धन लगी एकई जि भवनां सुख हुई । अनइ जिनपूजा लगी अनंतां सुख पांमीइं । ए भावु जाणिवउ ॥ ८९॥
[सो.] वीतरागनी पूजा साचइं भाविई जि कीजती गुणहेतु 5 हुइ । ईम्हई न हुई । ए वात कहइ छइ ।
[जि.] अथ जिनपूजानउ गुण कहइ । तित्थयराणं पूआ सम्मत्तगुणाण कारणं भणिआ। सा विय मिच्छत्तयरी जिणसमए देसिअअपूआ ॥९॥
[सो.] तित्थयराणं० तीर्थंकरदेवनी पूजा साचा परमेश्वरना 10गुण जाणी परमतत्त्व भणी देषतउ, इहलोक-परलोकनां फल अणवांछतउ, कर्मक्षयजिनी बुद्धिइं एकाग्रचित्तिइं करइ तउ सम्यक्त्वनउं करण थाई। सम्यक्त्व निर्मल करइ अनइ अनंत सुखहेतु हुइ । सा वि य० अनइ तेह जि वीतरागनी पूजा, ‘परमेश्वर ! तुं मुझहूई साजउ करिजे । अथवा ऋद्धि पुत्रादिक संतानादिक देजे । एतलाएक 15द्रव्यनी पूजा तुझहूई करिसु ।' जंजिणवर इम मानी ईंछी करइ । जे पूजा जिनशासनि मिथ्यात्त्वनी करणहार कहीइ ते देवगत मिथ्यात्त्व कहीइ ॥९०॥
[जि.] तीर्थकरनी पूजा सम्यक्त्वना गुणनउ कारणरूप भणी जिम जिम जिनपूजा कीजइ तिम तिम सम्यक्त्वना गुण ऊपजावइ । सा २०वि य ते जिनपूजाइ जिणसमए श्रीजिनशासनि मिथ्यात्त्वसहित हूंती अपूजा देसिअ कही। जइ जिनपूजा मिथ्यात्त्वसहित करइ तउ
१ पूजाइ. २ भावि. ३ 'जि' नथी. ४ गुणहेत. ५ अणवांछितउ. ६ कारण. ७ पुत्तसंतानादिक. ८ 'जं जिणवर' नथी. ९ ते.