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त्रण बालावबोध सहित ते सूधा मार्ग खरा धर्मनइ विषइ सुखिइं चालई । तेहनइं धर्मनु मार्ग कुलक्रमिइ जि आगइ चालिउ आवइ छइ । एह भणी तेहहूई धर्म करतां काई दोहिलं नही। जे पुणः पणि जे अमार्गि जाया विरूइ' अधर्म कुलि ऊपना तेहइ केतला जे मार्गि चालइ धर्म करइं तेहनइ कुलक्रमागत धर्म न हुई । ते जं धर्म करइं तं चुनं ते आश्चर्य ॥ ८३ ॥ 5
[जि.] सुद्धइ निर्मलइ मार्गि जात ऊपना द्विजात जे हुई ते सुखिइं समाधिइ भली परिइं शुद्धइ निःपाप मार्गि गच्छंति चालइ ते आश्चर्य नही । भला अनइ भलइ मार्गि हीडइ। जिम रोहणाचलि रत्ननउं आश्चर्य नही । जिम लंकाई सोना होवानउं आश्चर्य नही । पुण जे अमार्गजात त्रिजातई हुई ते मार्गि मार्गि जइ चालई तउ ते आश्चर्य ।।० जिम उकरडी माहे रत्न ऊपनउं हूंतउं आश्चर्य भणी हुइ ॥ ८३॥
[मे.] जे सूधइ मार्गि श्रावकनइ कुलि ऊपना सुखिइं समाधि सूधा मार्ग खरा धर्मनइ विषइ चालई । पणि जे अमार्गि अधम - कुलि जाया अनइ जे धर्ममार्गि चालइ ते आश्चर्य कउतिग ॥ ८३ ॥
[सो.] धर्म करतां कांई लगारइ विघ्न ऊपजइ । अजाण लोक:5 ते लेई धर्म रहइं लगाडइं । ए वात कहइ छइ ।
[जि.] अथ पापिष्ट मिथ्यात्त्वीनउं स्वरूप कहइ छइ । मिच्छत्तसेवगाणं विग्धसयाई पि बिति नो पावा । विग्घलवम्मि वि पडिए दढधम्माणं पणचंति ॥८४॥
[सो.] मिथ्यात्त्वना करन्हारनई अनेराइं संसारनां काज-20 व्यवसाय विवाहादिक करतां विघ्न अंतराय दुःख उपसर्गनां सइं पडई ।
१ विरूअइ. २ अधर्मि. ३ षिवंति, मे. पि बंति. ४ करण्हारनइं.