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· षष्टिशतक प्रकरण
जे ब्रह्मचारी विषयनिवृत्त हुइ, जे आपणी कीर्ति न वांछइ, जे दृढ सम्यक्त्वना धणी हुई, जे दुःखिइ आवइ कातर न हुई, एह्वा दृढ धर्मना धणीहूइं ए वेश्यादिक संघलाइ दूरि जाइं। आपणु लाग कांई देखई नहीं। एह भणी तेहहूई उचाटइं पुण काई न करइं । साम्हा 5प्रसन्न थाइं ॥ ८२॥ ..
[जि.] वेश्या तणा, बंदी भाट तणा, माहण ब्राह्मण तणा, डुंब तणा, यक्षभूतादिक तणा, भत्ता भक्तिकरणहारइ जि पुरुष भक्खहाणं भक्ष्यस्थानक । एतलइ जे वेश्यादिकहूई भक्ति करई तेह जि भक्तिकरणहारहूई देणहारहूई वेश्यादिक पाई। विरयाणं विरत 1०हूंता अणमानता पुरुष हूंता दूर वेगला जाइं नासइं । विरयाणमित्यत्र पंचम्यर्थे षष्टी प्राकृतत्वात् ॥ ८२॥
[मे.] वेश्या बंदी भाट ब्राह्मण डूंब यक्ष सेष थाकता गोत्रज पितर प्रमुख उपरि जे भक्ता हुई, बलि बाकुलि लापसीई करी
भक्ति करइं एतला भक्तिना करणहारजिनइ खाइं । वरसि वरसि ते 15वांछा करइ । अनइ ईया हूतां जे विरता छइ ते हूंता वेश्यादिक दूरि जाई । तेहनइ काई पाडूउं करी न सकइं ॥ ८२ ॥
[सो.] अकुलीन धर्म करई ते आश्चर्य । ए बात कहइ छइ ।
[जि.] अथ केई एकलूधर्मी जीवनउं स्वरूप प्ररूपइ । सुद्धे मग्गे जाया सुहेण गच्छंति सुद्धमग्गम्मि । २० जे पुण अमग्गजाया मग्गे गच्छंति तं चुजं ॥ ८३॥
[सो.] सुद्धे० जे शुद्धि मार्गि उत्तम सुश्रावकनइ कुलि जाया
१ निवृति. २ 'जे आपणी.....धणी हुई' एटलो पाठ सो. नी बीजी प्रतमाथी पडी गयो छे. ३ आविइ.