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त्रण बालावबोध सहित
तह तिम जि गुणवंत ऊपरि मात्सर्य सद्वेषभाव वहइ । जइ जन्मिउ न हुत, जइ मोटउ न थाउ तउ आगलि जातउ मिथ्यात्त्वी न हुत । अनइं वली गुणवंत ऊपरि . मात्सर्य न वहत । तिणि कारणि विद्वेषी भणी मिथ्यात्त्वीना जन्मनउं काई नही ॥ ८१ ॥
[मे.] ति पुरुष जननी माताई कांई जायउ ? अनइ जउ 5 जायउ तउ वृद्धिइं कांइ गयउ ? जइ मिथ्यात्वनइ विषइ रत आस्थावंत हूउ तिम गुणवंत धर्मवंत ऊपरि मत्सरु वहइ । एतलइ तेहनउ जन्म फोक ॥ ८१॥
[सो.] जिम जिम मिथ्यात्त्वि वाहिउ जापल सेषलनी पूजा करइ तिम तिम ते घणउ घणेरडउ व्यापीइं । अनइ दृढ धर्म जे हुइro तेह रहइं कांई करी न सकइं । ए वात कहइ छइ ।
[जि.] अथ नीचानउं स्वरूप कहइ छइ । वेसाण बंदियाण य माहणटुंबाण जक्खसिक्खाणं । भत्ता भक्खहाणं बिरयाणं जंति दूरेणं ॥ ८२॥
[सो.] वेसा वेश्या नगरनायिका' बंदी भट्ट ब्राह्मण.5 कुलगुरुप्रमुख डुंब गायन जापलसेषल गोत्रज पितरप्रमुख देहरडा एतलां ऊपरि जे भक्ता हुइं तेहहूई द्रव्य पूरइ । पूजा जिमण लापसी बलीबाकुलादिक करइ । ते लोक वेश्या भट्टादिक रहइ भक्ष्यस्थानक सदैव थाइ । वलि वलि वरसि वरसि पर्वि पर्वि सदैव वांछइं । बलात्कारिइं लिई, दापउं थापइ, लक्ष्मी नीगमइ । विरयाणं० अनइ जे विरत हुई,२०
१ घणउ' नथी. २ नाइका. ३ पालसी. ४ तीह वेश्या. ५ 'पर्वि पवि'
नथी