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aण बालावबोध सहित
ताण० तेह रहई मिथ्यात्वधर्म सहित लोक सघलउ तृणा सरिषउ असार प्रतिभासइ । जाणइ ए कांई नही ॥ ६७ ॥
[जि. ] जाण जेहना हियामा हे निर्मलइ ज्ञानि करी सम्यक् प्रकार श्रीजिनेन्द्र वस ताण तेहांहूई समिथ्यात्वि धर्मि करी सहित मिथ्यात्वी लोक सघलई तिणं व तृणवत् तृण सरीषउ निःसार अ विराजति शोभ ॥ ६७ ॥
[ मे. ] जेहन ही यह साचइ जाणिव करी सूधउ वीतरागनउ धर्म व तेह मनुष्यन मिथ्यात्त्वधर्मसंयुक्त लोक सघलड़ तृणा सरीषउ असार प्रतिभासइ | जाणइ जि ए काई नहीं ॥ ६७ ॥
[सो.] लोकनइ प्रवाहिई' केतलाई जाणई' क्षुभई । ए वात ४०
कहइ छइ ।
[ जि. ] अथ सम्यक्त्व पाषs श्रावकपणउं निरर्थक | इसुं बोल |
लोअप्रवाहसमीरणउद्दंड पडचंड लहरीए । दढसम्मत्त महाबलंरहिआ गुरुआ वि हलंति ॥ ६८ ॥ *s [ सो.] लोअपवाह० लोकनउ जे प्रवाह तेहरूपीआ 'समीरण जे वायु तेहनी प्रचंड गाढी लहरि करी दढ० दृढ निश्चल सम्यक्त्व रूपीआ आराधननउ जे छइ महाबल तीणई करी रहित गुरुआइ हल्लति डोलई । घणा लोक कांई मिथ्यात्त्व बोलता करता ' देषी मोटाइनां मन लहबहइं ॥ ६८ ॥
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[ जि. ] दृढ सम्यक्त्वरूप महाबल तिणि करी रहित पुरुष गुरुया वडाइ हूता ह ंति डोलई । किसइ करी ? लोकप्रवाहरूपउ १ प्रवाह २ जाण. ३. वायुनी. ४. आधारनउं. ५ बोलइ. ६. कहता.