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________________ षष्टिशतक प्रकरण समीरण वायु तेहनी उद्दंड प्रचंड रौद्र लहरी कंल्लोल तिणि करी । जिम वाउनी रौद्र लहरि करी मूल विणु नीबल वृक्ष डोलइ । तिणि - कारण नश्चल सम्यक्त्व धरिवउं ॥ ६८ ॥ ७२ [मे. ]. लोकप्रवाहरूपी ं समीरण वाय तेहनी उद्दंड प्रचंड 5 गाढी लहरिं करी दृढ सम्यक्त्वना रूप महाबल तिणि करी रहित गरुयाना मन हालई डोलई । मोटांइनां मन लहबहई ॥ ६८ ॥ [सो.] धर्मनी अवज्ञाना करणहार रहई जे दुःख हुई ते स्मरतां हिउं धूजइ । ए बात कहइ छइ । [ जि . ] जिनमतनी थोडी अवहेलना न करिवी । इसुं कहइ 1005 जिणमयअवहीलाए जं दुक्खं पाउणंति अन्नाणी । नाणीण तं सरिता भएण हिअअं थरत्थरइ ॥ ६९ ॥ [ सो.] जिण० जिनधर्मनी हीलाई निंदाई करी अज्ञानी अजाण जीव नरक तिर्यच गतिमाहि ग्यां हुंता जे दुःख प्रामइ ते दुःख - ज्ञानी जाणहूई सिद्धांतनई बलि जाणी संभारतां भई करी ही उं -थरथर कांपइ || ६९॥ [ जि. ] श्रीजिनमतंनी लगारएक अवहेलाई करी अज्ञानी मूर्ख दुःख पाउणति पामहं ते अज्ञानीनरं दुःख संभरित्ता संभारीनई भरण भय करी नाणीण ज्ञानवंतनउं हृदय थरत्थरइ कांपइ ॥ ६९ ॥ "20 [मे. ] जिनमतनी अवहीलना निंदा लगी अज्ञानी जीव अजाण जीव जे दुःख पामई ते ज्ञानी जाण सिद्धांतनइ बलि निंदा सांभरतां थकां भइ करी हीयउं थरहरइ कांपइ || ६९ ॥ १. संभरित्ता, जि. संभरित्ता २ हीला. ३ निंदा.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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