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'षष्टिशतक प्रकरण
[सो.] जह० जिम जिम जिनेन्द्रवचन श्रीसर्वज्ञनु धर्म साचउ चोषा हीयाना धणी मनि परिणमइ तह तिम तिम लोकरा प्रवाहिनु धर्म गुण विचार पाषइ ' आपणा देव, आपणा गुरु' इत्यादि कदाग्रहरूप नटावाइजिना चरित्र सरीपुं प्रतिभासइ । बाह्य मंडाण जि छइ । ; लोकरंजना मात्र जि छइ । अभ्यंतर धर्म कांई नथी। यत उक्तं श्रीउपदेशमालायां--- __पढइ नडो वेरग्गं निविज्जिज्जा य बहुजणो जेण ।
पढिऊण तं तह सढो जालेण जलं समोअरइ ॥ (गा. ४७४)
[जि.] जिम जिम सुद्धहृदयने हृदयि जिनेन्द्रनउं वचन सम्यक् i०प्रकारि परिणमइ वसइ तिम तिम निर्मलहृदय तणउं लोकप्रवाहि धर्म मिथ्यात्वधर्म नटचरित्र सरीषउं पडिहाइ प्रतिभइ शोभइ । जिम नटवानुं चरित्र फोकट तिम लोकप्रवाहि धर्म फोकट इसुं मानइ ॥६६॥ .. [मे.] जिम जिम जिनेन्द्रनां वचन सम्यग् प्रकारि परिणमई कहिनइं सुद्ध हृदयना धणीनई तिम तिम लोकनउ प्रवाह नटावाना 15चरित्र सरीषउ प्रतिभासइं। कांइ ? 'ए सहू बाह्य मंडाण । लोकरंजना मात्र, पणि आभ्यंतरि नहीं ॥६६॥
[सो.] वली एह जि वात कहइ छइ । [जि.] अथ जिनधर्मप्रमाण बोलइ ।
[मे] वली एह जि वात कहइ । २०जाण जिणिदो निवसइ सम्मं हिययम्मि सुद्धनाणेणं । ताण तिणं व विरायइ समिच्छधम्मो जणो सयलो ॥६॥
[सो.] जाण० जेहनइ हीअइ साचइं जाणवई करी सम्यग् दृढ श्रीजिनेन्द्र वसइ, वीतरागनु धर्म जेहनइ मति साचउ बइठउ हुइ