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टीकश्रावकज्ञप्त्याख्यप्रकरणं ।। ६१ भणिया पुत्तिए पडिलाभेहि साहुणो सा मंडियपसाहिया पडिलाभेइ साहूण जल्लगंधो तीए आघातो सा चिंतेइ । अहो अणवजो भट्टारगेहिं धम्मो देसिओ जइ पुण फासुएण पाणीएण पहाएजा को दोसो होजा । सा तस्स हाणस्स अणालोइय अपडिक्ता कालं काऊणं रायगिहे गणियापाढे समुप्पन्ना । गम्भगया चेव अरइं जणेइ गब्भसाउणेहि य ण सडइ ॥ जाया समाणी उजिया । सा गंधेण तं वनं वासेइ । सेणिओ तेण पदेसेण णिगच्छइ सामिणो वंदिउ सो खंधावारो तीए गंधं ण सहइ। रन्ना पुच्छियं किं एयं तेहिं कहियं दारियाए गंधो गंतूणं दिहा भणइ एस एव पढम पुच्छत्ति गओ वंदित्ता पुच्छइ तओ भगवया तीए उट्ठाणपारियावणिया कहिया । तओ राया भणइ कहिं एसा पच्चणुभविस्सइ सुहं वा दुक्खं वा । सामी भणइ एएण कालेण वेइयं इयाणिं सा तव चेव भजा भविस्सइ अग्गमहिसी ।। अट्ट संवच्छराणि जाय तुन्भं रममाणस्स पट्टीएहं सो. लीलं काहिइ तं जाणिज सुवंदित्ता गओ । साय अवगयगंधा आहीरेण गहिया संवड़िया जोवणत्था जाया । कोमुइचार मायाए समं आगया । अभओ सेणिओ य पच्छन्ना कोमुइचारं पेच्छंति। तीए दारियाए अंगफासेण सेणिओ अजोववन्नो नाममुदं दसिया तीए बंधइ । अभयस्स कहियं नाममुदा हरिया मग्गाहि । तेण मणुस्सा दारेहिं बद्धेहिं ठविया । एकेक माणुस्सं पलोएऊण णीणिज्जइ । सा दारिया दिट्ठा चोरित्ति गहिया परिणीया य ।