________________
१८० सटीकश्रावकप्रज्ञप्त्याख्यप्रकरणं ।
तिथिः पर्वोत्सवाः सर्वे त्यक्ता येन महात्मना।
अतिथिं तं विजानीयाच्छेषमभ्यागतं विदुः॥ तस्य संविभागो अतिथिसंविभागः संविभागग्रहणात्पश्चात्कर्मादिपरिहारमाहेति । ___ एत्थ सामायारी सावगेण पोसहं पारंतेण नियमा साधूणमदाउं न पारेयव्वं दारं पारेयव्वं । अन्नया पुण अनियमो दाउं वा पारेइ पारिए वा देइ त्ति तम्हा पुव्वं साहूणं दाउं पच्छा पारेयवं कहं जाहे देसकालो ताहे अप्पणो सरीरस्स विभूसं काउं साहुपडिस्सयं गंतुं णिमंतेइ भिरकं गेण्हह त्ति । साहूणं का पडिवत्ती ताहे अन्नो पडलयं अन्नो मुहणंतगं अन्नो भायणं पडिलेहेइ मा अंतराइयदोसा ठवणा दोसो य भविस्सन्ति । सो जइ पढमाए पोरिसीए णिमंतेइ अत्थि णमोकारसहियाइत्ता । तो गच्छइ अह नत्थि न गच्छइ तं ठवियव्वं होइ जइ घणं लगेजा ताहे गेण्हइ संविताविजइ जो व उग्घाडाए पोरसीए पारेइ पारणाइत्तो अन्नो वा तस्स दिजइ सामन्नेणं नाए कहिए पच्छा तेण सावगेण समं गम्मइ. संघाडगो वच्चइ एगो न वट्टइ पट्टवेडं साहू पुरओ सावगो मग्गओ घरं णेऊण आसणेण उवणिमंतिजइ जइ णिविट्ठो लट्ठयं अह ण णिविसति तहा वि विणओ पयत्तो ताहे भत्तपाणं देइ सयं चेव अहवा भाणं धरेइ भजा से देइ अहव ठिओ अच्छइ जहा दिन्नं साहुवि सावसेसं दव्वं गेलइ पच्छाकम्मपरिहरणट्ठा दाउं वंदिऊण विसजेइ विसजित्ता अणु१ एष पाठोऽशुद्ध इव प्रतिभाति परं दृष्टादशॆष्वेतादृश एव