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युद्धनीतिप्रकरणम्
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गुल्म (सैन्यदल के विभाग विशेष का) कथन - नौ हाथी, नौ रथ, सत्ताइस अश्व और पैंतालिस पैदल सैनिकों की संख्या से युक्त रक्षक सैन्य समूह गुल्म है। एतत्कृतशङ्खभेरीपटहशब्दानुसारेणैव सेनाया युद्धे स्थानं ततोऽ
पसरणं चबोभवीति। __ भिन्न स्थानों पर स्थित गुल्मों के शङ्ख, भेरी, पटह आदि शब्दों के अनुसार ही सेना का युद्ध में गमन और वहाँ से हटना होता है।
देवान्गुरूंश्च शस्त्राणि पूजयित्वा महीधनः। शुभं शकुनमादाय वीरान्सन्तोष्य सर्वथा॥४६॥ प्रणवतूर्यनिस्वानजयध्वन्यूर्जितस्पृहः सन्नद्धबद्धकवचः राजचिह्नरलङ्कतः ॥४७॥ जयकुञ्जरमारूढः धृतशस्त्रचमूवृतः
पश्येत्परबलं सर्वं किमाकारं व्यवस्थितम्॥४८॥ राजा को देव, गुरु तथा शस्त्रों की पूजा कर, शुभ शकुन लेकर, सब प्रकार से वीरों को सन्तुष्ट कर, प्रणव (ॐ) तथा भेरी के शब्दों की जय ध्वनि से उत्साहित, युद्धातुर, कवच धारण किये हुए, राजचिह्नों से सुशोभित, हाथी पर सवार, शस्त्र धारण किये हुए और सेना से घिरे हुए, समस्त शत्रुबल का निरीक्षण करना चाहिए कि उसकी व्यूह रचना किस प्रकार है।
आहवे सैव प्राची दिक् यतः ................। तत एवं मुखं कुर्यात् स्वसेनायाः इलापतिः॥४९॥ संग्राम में तेज पूर्व दिशा में अतः राजा अपनी सेना का मुख इस प्रकार करे।
चक्रसागरव्यूहाद्यैर्विविधा व्यूहनिर्मितिः।
यतः परबलं भिन्द्यात् कल्पयेत्ता निजे बले॥५०॥ शत्रु सेना किस प्रकार नष्ट हो यह विचार कर चक्र, सागर आदि अनेक प्रकार की व्यूह रचना से अपनी सेना को व्यवस्थित करे।
स्वल्पान्तसंहतान्कृत्वा योधयेच्च बहून्यथा।
कामं विस्तार्य वजेण सूच्या वा योधयेद्भटान्॥५१॥ राजा थोड़ी सेना इकट्ठा कर अत्यधिक सेना के साथ युद्ध करे, वज्र या सूची व्यूह से योद्धाओं को अत्यधिक फैलाकर युद्ध करना चाहिए।
(वृ०) त्रिधावस्थितबलेन वज्रव्यूहेन पूर्वोक्तेन सूचिव्यूहेन वा योधयेत्।