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लघ्वर्हन्नीति
तीन प्रकार के व्यूह में स्थित सेना द्वारा वज्रव्यूह अथवा सूचीव्यूह के द्वारा युद्ध करना चाहिए।
(वृ०) क्षेत्रविशेषे शस्त्रविशेषयुद्धमाह - क्षेत्र-विशेष में शस्त्र-विशेष के द्वारा युद्ध करने का कथन -
खङ्गकुन्तादिशस्त्रैश्च गर्तादिरहितस्थले।
नौभिर्द्विपैरनूपे तु समे च रथवाजिभिः॥५२॥ गड्ढे आदि से रहित (समतल) स्थल पर तलवार, भाला आदि शस्त्रों से, जल में नाव से, हाथियों से तथा समतल भूमि पर रथ और घोड़ों से युद्ध करे।
निकजे द्रमसङ्कीर्णे बाणैर्युध्येत भूपतिः।
वैशाखस्थानमाश्रित्य वेध्यवेधनकोविदः॥५३॥ राजा को उपवन में और वृक्षों से घिरे स्थल में बाणों से, वैशाख मुद्रा का आश्रय लेकर लक्ष्य-वेध में निपुण योद्धाओं के द्वारा युद्ध करना चाहिए।
(वृ०) चापयुद्धे वैशाखस्थानस्वरूपं चेत्थम् -
धनुष युद्ध में वैशाखस्थान (बाण चलाने की मुद्रा-विशेष) का स्वरूप इस प्रकार है
स्थानान्यालीढवैशाखप्रत्यालीढानि मण्डलम्।
समपादं चेति तत्र वैशाखस्थानलक्षणम्॥५४॥ आलीढ, वैशाख, प्रत्यालीढ, मण्डल और समपाद (पाँच) स्थान हैं। वैशाख स्थान का लक्षण इस प्रकार है -
पादौ कार्यों सविस्तारौ समे हस्तौ तत्प्रमाणतः।
वैशाखस्थानके सद्यः कूटलक्ष्यस्य वेधने॥५५॥ वैशाख स्थान नामक बाण चलाने की विशेष मुद्रा में कठिन लक्ष्य शीघ्र भेदने हेतु दोनों हाथों सहित पैरों को उस लक्ष्य के प्रमाण के अनुसार फैलाना चाहिए।
शौर्याभिमानिनः शूरान् बलिष्ठान् पृतनामुखे।
योजयेद्बन्दिभिर्वीररसेनोत्साहयेद्भटान् ॥५६॥ (अपनी) वीरता पर गर्व करने वाले बलशाली वीरों को सेना के अग्रभाग में रखकर उद्भट वीरों का वीर रस से उत्साहवर्धन के लिए बन्दियों को लगाना चाहिए।