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लघ्वर्हन्नीति
मध्ये स्थितस्य नृपतेः परितो वलयाकारेण पद्मबलस्थापनं पद्मव्यूहः।
मध्य में स्थित राजा के चारों ओर वलय आकार में (दो-दो पतियों में) स्थित सेना की स्थापना को पद्मव्यूह कहते हैं।
एवं सङ्गच्छतस्तस्यानवछिन्नप्रयाणतः।
सीमान्तमुपसम्पद्य स्कन्धावारः प्रजायते॥४१॥ इस प्रकार निर्बाध गति से प्रयाण करते हुए सीमान्त में पहुँचकर स्कन्धावार का संयोजन करे।
(वृ०) कुत्र स्कन्धावारो विधेय इत्याह - सेना का शिविर कहाँ लगाना चाहिए, इसका कथन -
जलाशयाः प्रभूताश्च तृणधान्येन्धनानि च।
सुलभान्युच्चभूमिश्च तंत्र सेनां निवेशयेत्॥४२॥ जहाँ पर्याप्त जलाशय, घास, धान्य, इन्धन और उच्च स्थान सुलभ हो वहाँ सेना शिविर बनाये।
(वृ०) ततः किंकार्यमित्याह - सैन्य शिविर स्थापित करने के बाद क्या करना चाहिये, इसका कथन -
प्रतीपो न समायातोऽभिमुखं चेत्तदा चरः।
प्रेषणीयः पुनस्तस्याभिप्रायं ज्ञातुमत्र वै॥४३॥ यदि शत्रु सम्मुख नहीं आया हो तब उस (शत्रु) का अभिप्राय जानने के लिए गुप्तचर प्रेषित करना चाहिए।
ज्ञायते युद्धसज्जः स चेत्तर्हि रणभूमिका।
शोधनीया यथा सेनागतिरस्खलिता भवेत्॥४४॥ यदि वह (शत्रु) युद्ध के लिए तत्पर दिखाई पड़े तब युद्धभूमि की गवेषणा करनी चाहिए जिससे सेना की गति निर्बाध हो।
गुल्मान्प्रधानपुरुषाधिष्ठितान्निपुणान्युधि ।
स्थाने च कृतसङ्केतानभीरून् संस्थापयेन्नृपः॥४५॥ निर्भय, आयुध (अस्त्र-शस्त्र सञ्चालन) में निपुण, उत्तम पुरुषों से अधिष्ठित गुल्मों (सैन्य दल) के सङ्केत सहित योग्य स्थान पर राजा को स्थापित करे।
(वृ०) गुल्माह। नव गजाः नव रथाः सप्तविंशत्यश्वाः पञ्चचत्वारिंशत्पदातयश्चेत्संख्यान्वितरक्षकसैन्यसमुदायो गुल्मः।