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युद्धनीतिप्रकरणम्
- यदि राजा को शत्रु से चारों दिशाओं से भय हो तो वह सेना को दण्डव्यूह के आकार में लेकर चले, यदि पीछे से भय हो तो सेना का शकटाकार व्यूह बनाकर आगे बढ़े।
ता_शूकरव्यूहाभ्यां पार्श्वतो भीतिवान् व्रजेत्। मुखे पश्चाद्भये जाते मकरव्यूहसाधनः॥३८॥ सूचीव्यूहेन भूभर्ता संव्रजेदग्रतो भये। यतो हि भयशङ्कास्याद्बलं विस्तारयेत्ततः॥३९॥ पद्मव्यूहे निवासे हि सदा तिष्ठेत्स्वयं नृपः।
सेनापतिबलाध्यक्षैः रक्षा कार्या समन्ततः॥४०॥ यदि राजा को शत्रु से दोनों पार्श्व से भय हो तो उसे सेना का तार्क्ष्य और शूकर व्यूह बनाकर आगे बढ़ना चाहिए। आगे और पीछे से भय उत्पन्न होने पर सेना का मकर व्यूह बनाकर आगे बढ़ना चाहिए। आगे से भय होने पर सेना का शूची व्यूह बनाकर राजा को आगे बढ़ना चाहिए। जहाँ से विशेष भय हो वहाँ सेना को दोनों ओर फैला देना चाहिए। सेना का शिविर लगाना हो तो व्यूह रचना पद्म आकार में करनी चाहिए। राजा व्यूह के मध्य में रहे और सेनापतियों द्वारा चारों ओर से उसकी रक्षा की जानी चाहिए।
(वृ०) मुखे बलाध्यक्षो मध्ये भूपः पृष्ठतः सेनापतिः उभयपार्श्वतश्चेभास्ततो हयास्ततः पदातयश्चेत्येवं दण्डाकाररचनात्मकः सर्वत्र समविस्तारो दण्डव्यूहः।
मुख अर्थात् अग्रभाग में सेनाध्यक्ष, मध्य में राजा, पिछले भाग में सेनापति, दोनों पार्यों में हाथी, उसके बाद घोड़े, पुनः पैदल सैनिक - इस प्रकार दण्ड के आकार में सभी स्थानों पर समान विस्तार से युक्त संरचना दण्डव्यूह है।
सम्मुखाग्रे सूक्ष्मः पश्चात् पृथुलः शकटाकारोऽनोव्यूहः। आगे कम और पीछे विस्तीर्ण आकार वाली सेना की संरचना अनोव्यूह है।
तद्विपरीतो मकरव्यूहः। इस (अनोव्यूह) के विपरीत अर्थात् आगे विस्तीर्ण और पीछे सङ्कीर्ण आकार वाली सेना की संरचना मकरव्यूह है।
मुक्तामालेव संहततयावस्थापनं गमनं वा सूचीव्यूहः। सेना को मोतियों की माला की तरह जुड़ी हुई स्थिति में स्थापित करना अथवा गमन करना सूचीव्यूह है।