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तृतीय अधिकार
३.५
दायभागप्रकरणम्
लक्ष्मणातनयं नत्वा घुसदेन्द्रादिसेवितम् । गेयामेयगुणाविष्टं दायभागः प्ररूप्यते॥१॥
देव तथा इन्द्र आदि से सेवित, अपरिमित कीर्तन योग्य गुणों से सम्पन्न लक्ष्मणा के पुत्र (तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ स्वामी) की वन्दना कर दायभाग अर्थात् पैतृक सम्पत्ति के उत्तराधिकारियों में विभाजन की प्ररूपणा की जाती है।
(वृ०)
पूर्वप्रकरणे देयविधिः
प्रकाशितस्तत्रादेयसाधारणद्रव्यव्ययीकरणकारणोद्भूतकलहे भ्रातृणां परस्परं दायभागः स्यात् अतस्तद्विचारः सम्प्रति विधीयते -
पूर्वप्रकरण में देयविधि का कथन किया गया उसमें अदेय साधारण द्रव्य के व्यय के कारण उत्पन्न कलह में भाइयों का परस्पर दाय भाग हो इसलिए अब उसका विचार किया जाता है -
स्वस्वत्वापादनं दायः स तु द्वैविधमश्नुते ।
आद्यः सप्रतिबन्धश्च द्वितीयोऽप्रतिबन्धकः॥२॥
अपने स्वामित्व का प्रतिपादन करना दाय है । वह (दाय) दो प्रकार का कहा प्रथम प्रतिबन्ध सहित और दूसरा प्रतिबन्ध रहित ।
है
( वृ०) दायोनाम मातृपितृपितामहादिवस्तूनां स्वस्वत्वापादनं येन तद्व्ययादौ कोऽपि निषेद्धुं न शक्नोति, स द्विविधः सप्रतिबन्धकोऽप्रति-बन्धकश्च तत्रपितृव्यभ्रातृजादीनां पुत्रादिप्रतिबन्धकभावेन यत्स्वत्वं स सप्रतिबन्धकः । तत्र पुत्रादीनां प्रतिबन्धकत्वात् । पुत्रपौत्रादीनां त्वप्रतिबन्धकः पुत्रत्वेन तत्स्वामित्वे नहि कोऽपि प्रतिबन्धकोऽस्तीति ।
माता-पिता, पितामह आदि द्वारा अर्जित वस्तुओं का स्वामित्व - प्रतिपादन करना चाहिए ताकि उसके व्यय आदि को कोई निषिद्ध न कर सके। वह पैतृक