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लघ्वर्हन्नीति
असफल हो जाय। भविष्यकालीन प्रयोजन, प्रतिभूति, दान, वापस ग्रहण, धरोहर, विक्रय आदि किया हो तो उन सभी शर्तों को अन्त में रद्द करना चाहिये । ( वृ०) अथ योऽदत्तं गृह्णाति यश्चादेयं प्रयच्छति तद्दण्डमाह इसके पश्चात् जो अदत्त ग्रहण करता है और जो अदत्त देता है उसके दण्ड
का कथन
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लोभात्तथादेयस्य
दायकः ।
अदत्तग्राहको एतावुभौ दण्डनीयौ यथादोषं महीभुजा ॥ १७॥
एवं देयविधिः प्रोक्तः सभेदो विस्तरेण वै । महार्हन्नीतिशास्त्राच्च ज्ञेयस्तदभिलाषिभिः ॥ १८ ॥
लोभवश अदत्त दान को ग्रहण करने वाले तथा अदेय को देने वाले इन दोनों को राजा द्वारा उनके दोष के अनुसार दण्डित किया जाना चाहिये। इस प्रकार देयविधि का भेद सहित (संक्षेप) में वर्णन किया गया जिज्ञासुओं को विस्तार से महा अर्हन्नीति शास्त्र से जानना चाहिये ।
॥ इति देयविधि प्रकरणम्॥