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लघ्वर्हन्नीति
दर्शनप्रतिभू ऋणी के देश से बाहर चले जाने पर ऋणदाता की सन्तुष्टि के लिए ऋण वापस करने की अवधि पूरी होने पर प्रतिभू द्वारा उसे प्रस्तुत करने में असमर्थ होने पर प्रतिभू से रजतमुद्रा (धन ग्रहण करे)। परन्तु न्यायपूर्वक तीन पक्ष की अवधि पुनः दे और इस अवधि में प्रतिभू यदि ऋणी को दिखा दे (प्रस्तुत कर दे) तो प्रातिभाव्य से मुक्त हो जाय नहीं तो प्रतिभू को धन देना ही पड़ेगा। तथाहि -
प्रतिभूरधमार्थं गृह्यात्पक्षत्रयं प्रभोः।
दर्शयित्वा स्वयं काले मुक्तः स्वोक्तेर्भवेदलम्॥२७॥ यदि प्रतिभू ने ऋणी को दिखलाने (प्रस्तुत करने) के लिए तीन पक्ष का समय माँगा हो निश्चित अवधि में उस (ऋणी) को दिखलाकर अपने वचन से पूर्णतया मुक्त हो जाए।
---- आधिविषयमुच्यते विश्रम्भाय प्रभोर्वस्तु दत्वा गृह्णाति रौप्यक्यान्। स आधिर्द्विविधः प्रोक्तो नियतेतरभेदतः॥२८॥ गोप्यभोग्यतया सोऽपि द्विविधः सम्प्रकीर्तितः।
वर्द्धिष्ण्वितरभेदाभ्यां पुनः सो द्विविधः स्मृतः॥२९॥ (आधि का वर्णन) ऋणदाता के विश्वास के लिए (ऋण के बदले) वस्तु प्रदान कर ऋण ग्रहण करता है इसे आधि कहा जाता है, यह नियत और अन्य दो प्रकार की होती है। रक्षा योग्य और भोग्य होने से भी वह दो प्रकार की होती है। वृद्धि को प्राप्त होने वाली और उससे भिन्न की दृष्टि से भी वह दो प्रकार की होती
(वृ०) प्रभोर्विश्वासार्थे यद्वस्तु धनिनिकटे स्थाप्यते स आधिर्नियतोऽनियतश्चेति द्विविधोऽपि गोप्यभोग्यभेदेन द्विविधः यथायमाधिर्वैशाखशुक्लसप्तम्यां रजतान् दत्वा मोचयिष्यतेऽन्यथा तवैवेति नियतः। स्वेच्छयैव गृह्यते सोऽनियत एव। गोप्यस्तु हैमरजत रत्नादिको भोगान) नियतकालान्ते प्रणश्येत् भोग्यः। क्षेत्रारामादिर्न नश्यति तस्य त्रिंशद्वर्षावधित्वात् -
__ प्रभु - ऋणदाता के विश्वास के लिए उसके समीप जो वस्तु स्थापित की जाती है वह आधि नियत या अनियत दो प्रकार की कही जाती है। गोप्य और अभोग्य के भेद से भी यह दो प्रकार की होती है। उदाहरणस्वरूप वैशाख शुक्ला सप्तमी तक रुपये देकर यह आधि मुक्त कराऊँगा अथवा आपकी ही हो जायगी, यह नियत आधि है। ऋणदाता स्वेच्छा से आधि ग्रहण करे यह अनियत आधि है।