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ऋणादानप्रकरणम्
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प्रत्यये यथा अयमेतत्पुत्रः सपुत्रः कुलीनोऽस्तीति मत्प्रत्ययेनास्मै यथायाञ्ज्ञां द्रव्यं प्रयच्छायं त्वां कदापि न वञ्चयिष्यत इति।
प्रत्यय प्रतिभू (प्रतिभू का वह प्रकार है) जैसे यह इस (अमुक व्यक्ति) का पुत्र है, यह पुत्रवान है, उत्तम परिवार का है मेरे विश्वास पर इसे माँग के अनुसार द्रव्य दें, यह तुम्हें कभी ठगेगा नहीं इस प्रकार आश्वासन देना।
दाने यथा त्वमेनं प्रति किञ्चिद्याचसे अयं दास्यति शीघ्रमेव अन्यथैतत्कालेऽहं दास्यामि इति।
दान प्रतिभू जैसे तुम इस (ऋणी) से कुछ माँगते हो तो यह शीघ्र देगा अन्यथा इस समय तक मैं स्वयं दूंगा (इस प्रकार कहने वाला) दान प्रतिभू है। किञ्च
गृहीतद्रव्यो निःस्वश्चेत् प्रतिभूर्धनवान्सदा।
मूलं दत्वैव सर्वं तत्कुर्यात्तं निर्ऋणं तथा॥२५॥ यदि ऋण लेने वाला निर्धन हो प्रतिभू धनवान् हो तो समस्त मूलधन देकर ही ऋण लेने वाले को ऋणमुक्त करना चाहिए।
ऋणी यदि निःस्वः प्रतिभूः धनवान्तदा सर्वमूलं दत्वैव तं ऋणिनं निर्ऋणं कुर्यादिति भावः। __ ऋणी यदि निर्धन और प्रतिभू धनवान हो तो सम्पूर्ण मूलधन लौटाकर ही उस ऋणी को मुक्त कर देना चाहिए - यह अभिप्राय है।
यदि एकस्मिन् कृत्ये बहवः प्रतिभुवस्तदा स्वस्वांशानुसारेण द्रव्यमेकीकृत्य धनिनं दद्युः।
यदि एक कृत्य (ऋण) के बहुत से जमानत वाले हैं तब अपने-अपने अंश के अनुसार धन एकत्र कर ऋणदाता को दें।
एककृत्ये प्रतिभुवः बहवः स्युः परस्परम्।
स्वस्वशक्त्यनुसारेण धनिने दद्युरेकशः॥२६॥ यदि कार्य (ऋण) एक हो और प्रतिभूतियाँ बहुत हों तो आपस में मिलकर अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार ऋणदाता को धन एकबार में वापस कर देना चाहिए।
(वृ०) दर्शनप्रतिभूर्धनितृप्तये कृतकालावधेर्ऋणिनो देशान्तरगतत्वात्तदन्ते तं दर्शयितुमशक्तश्चेद्धनी तस्माद्रजतानि गृह्णीयात्तद्युक्तं परं न्यायरीत्या पक्षत्रयावधि पुनर्दद्यात्तदवधौ प्रतिभूस्तं दर्शयेत्तदा प्रातिभाव्यत्वेन मुक्तो भवेत् अन्यथा रजतानि देयादेव।