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(४७) श्री मंगलकारी
कृते-माटे; अर्थे धर्मलान-धर्मलालरूप विना अमे जाणीए बोध आशिर्ष आशिष
गति गति बेषामबरिण: वेषनो आडंबर न नहीं राखनार
यात्मनः पोतानी स्वजीवन-पोतानी आजीकिाना
कट्यां चोलपटं तनौ सितपटं कृत्वा शिरो ढुंचनं, स्कंधे कंबलिकां रजोदरणकं निदिप्य कदांतरे; वके वस्त्रायो विधाय ददतः श्रीधर्मलानाशिषं, वेषामंबरिणः स्वजीवन कृते विद्मो गतिं नात्मनः ॥ ३॥
शब्दार्थ:- चोलपटो, शरीरे धोलो उत्तर पटो ( चादर) उढो, माथे लोच करावी, खने का. मल मुकी, बगलमा ओघो तथा मोंढे मुहमति राखी, धर्मशाननी कदवाणकार आशिष देता, पोतानी आजिविका चलाववा माटे श्रावो वेषनो श्राबर