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( 4 ) राखता, एवा श्रमारी शी गति थशे! ते अमे जापता नथी ॥३॥
॥ गाथा ४ थीना बुटा शब्दोना अर्थ ॥ निदा-निख, याचना. सकल मनोयोगनी नित्ति पुस्तक चोपडी; पोथी
तथा तमज वस्त्र कपड़े
कणं-पलवार पात्र-पा
अपि-पण वसति रहेवानुं स्थान प्रोज्य त्याग करीने भावार-हवा, वस्त्र
त्रमाद-प्रमाद, आलस लुब्धा=(मेलववामां) लोनी द्विषं देषने यथा जेम
स्वार्थाय आत्म साधन माटे नित्यं रोज
प्रयतामहे अमे यत्न करीए बीए मुग्धजन-लोला माणसने यदि जो प्रतारणकृते-ठगवा माटे तदा त्यारे कष्टेन कष्टवके
सर्वार्थ सिहि सर्व अर्यनीसिदि खिद्यामहे वेद पामीए बीए जवे-होय आत्मारामतया आत्मारामपणे
निदा पुस्तक वस्त्र पात्र वसति प्रावार