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________________ [99] बोल || ३ - तथा मरीचीइं कविला इत्थंपि इहयंपि ए कपिला दुर्भाषित कहीइं पणि सर्वथा उत्सूत्र न कहीइं श्री आवश्यक निर्युक्तिप्रमुख ग्रंथनी मेलइं तृतीय बोल ||४- तथा उत्सूत्रभाषी अणआलोई अणपडिक्कमई काल करइ तेहनइ नियमा अनंतसंसार होइ पणि असंख्यातओ तथा संख्यात नहीं । गच्छाचार प्रमुख ग्रंथनी मेलइ चतुर्थ बोल. ।। ५- तथा मार्गानुसारी धर्मकर्त्तव्य अनुमोदवा जोग्य हुइ अन्यथा न हुई. पंचाशकग्रंथनी मेलई ॥ पंचम बोल ||५|| ६ - तथा बृहत् कल्पादिकग्रंथनई अनुसारिं मिथ्यादृष्टिग्रहीत चैत्य अवंदनीक हुइ, एहथी अन्यथा प्ररूप ते उत्सूत्रभाषी जाणीइं छइ सही. षष्टम बोल ॥ ६ ॥ ७ - तथा मांसभक्षण करइ सही तेहनइ सम्यकत्व न रहइ । सप्तम बोल ॥७॥ श्रीरस्तु ।। श्री शुभं भवतु ||” साथसाथ गच्छाधिपति आ. श्री विजयदेवसूरिजी महाराजे वळते ज दिवसे पू.उ. श्री मुक्तिसागरजीगणिने 'राजसागरसूरि' नाम स्थापवापूर्वक आचार्यपद आयुं. पू. शासनस्तंभ - गीतार्थसार्वभौम - तार्किकमूर्धन्य महामहोपाध्याय श्री धर्मसागरजी महाराजे पोताना दीक्षापर्यायना ५६ वर्षना गाळामां- “ खरतर - पायचंद - आंचलिक - पूनमी आ - लोंका - कडवामती - वीजामती आदि उत्सूत्रभाषीओनी साथे वादो करीने-चर्चा करीने तेओ बधायने बोलता बंध कर्या हता, ते-ते मतना पक्षकार एवा साधु अने श्रावकोनी मायाजाळमां फसाता एवा पूज्य गच्छनायकोने पण फंसाता अटकाव्या हता. तदुपरान्त (१) प्रवचनपरीक्षा, (२) सर्वज्ञशतक, (३) सूत्रव्याख्यानविधिशतक, (४) पर्युषणादशशतक, (५) कल्पकिरणावली, (६) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका, (७) इर्यापथिकी- षट्त्रिंशिका, (८) औष्ट्रिकमतोत्सूत्रप्रदीपिका, (६) धर्मतत्त्वविचार, (१०) तपगच्छपट्टावली, (११) नयचक्रटीका, (१२) औष्टिकमतोत्सूत्रोद्घाटनकुलक, (१३) गुरुपरिपाटी सटीक, (१४) महावीरविज्ञप्तिद्वात्रिशिका सटीक, (१५) वीरजिनस्तोत्रावचूरि, (१६) षोडशश्लोकी, (१७) नवनिह्नवी सटीक, (१८) वीरजिनस्तोत्र आदि शासनमान्य अने विद्वद्भोग्य एवा तेमज नय--भंगीसभर ग्रंथरत्नोनुं नवसर्जन पण कर्तुं हतुं.” आ प्रमाणे शासन - शास्त्र - सामाचारी रक्षा काजे ज जे महापुरुषे आ अवनीतल उपर अवतार धारण कल तो अने ए रक्षाकार्य, पोताना तन-मनना भोगे अने जानना पण भोगे दस-दस कुमतवादी ओना तथा स्वसमुदायना पण परिबळनी सामे टक्कर झीलीने आजीवन कर्तुं हतुं, ते सुगृहीत नामधेय - महासंयमी - गीतार्थ सार्वभौम पू. महामहोपाध्याय श्री धर्मसागरजी महाराज, छेल्ले अनशन स्वीकारीने अने पं. श्री लब्धिसागरजी गण आदि द्वारा करावाती निर्यामणापूर्वक विक्रम संवत १६५३ना कारतक शुदि नोमना दिवसे खंभात बंदरे स्वर्गे सीधाव्या !! आ पू. महो० श्री धर्मसागरजी गणिवर्य श्रीनी संधे काढेल स्मशासनयात्रानुं, पालखीनुं तेमज अग्निदाहस्थळे कामधेनुनुं आववुं, दूधनो काया उपर प्रक्षाल करवो आदिनुं रोमांचक वर्णन, तेओ श्रीना रास उपरथी तथा ऐतिहासिक प्राचीन प्रतो उपरथी जनताए जाणी लेवुं आवा शासन संरक्षक--शासनप्राण--शासनाधार पूज्य महापुरुषोने कोटि कोटि वंदन हो !! परम पूज्यपाद उपाध्याय श्री धर्मसागरजी गणिवर्य महाराजनो जन्म, उत्तर गुजरात - विजापुर पासे लाडोल गाममां वीशा ओसवाळ कुंटुबमां थयेल हतो. महेसाणामां तेओश्रीनुं मोसाळ हतुं.
SR No.022027
Book TitleKupaksha Kaushik Sahasra Kiran Aparnam Pravachan Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsagar, Narendrasagarsuri, Munindrasagar, Mahabhadrasagar
PublisherShasankantakoddharsuri Jain Gyanmandir
Publication Year2002
Total Pages502
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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