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________________ [१०] महो० श्रीना रचेला ग्रंथोने अने सागरगीतार्थोने अप्रमाणिक तथा खोटा तरीके राज्यद्वारा जाहेर कराववा माटे पू.आ.श्री सेनसूरिजी म.नी पाटे आवेला पू.आ.श्री विजयदेवसूरिजीना स्थाने पोते नवा बनावेल आ.श्री. विजयानंदसूरिने स्थापीने जहांगीर बादशाहना प्रीतिपात्र एवा उ.श्री भानुचंद्रगणि तथा उ.श्री सिद्धिचंद्रजी गणिद्वारा अवळी वातोनी रजूआत करवापूर्वक जहांगीर बादशाहने पण खूब उश्केरेल! आथी छंछेडायेला बादशाहे वि. सं. १६७३मां खंभात चातुर्मास स्थित पू.आ.श्री विजयदेवसूरिजीने अने राधनपुरस्थित पू. महो० श्री नेमिसागरजीगणिने ताकीदे मांडवगढ हाजर थवाना हुकमो छोड्या! परिणामे भरचोमासामां अनेक मुश्केलीओ अने मुसीबतोनो सामनो करी बंने पूज्यवर्यो मांडवगढ आव्यां : पछी जहांगीर बादशाहनी राजसभामांज बादशाहना प्रकांडपंडितोनी हाजरीमां चालेला वादमां बने पूज्योए ते प्रतिस्पर्धी उपाध्याय जूथने सखत पराभवित करवा पूर्वक 'सर्वज्ञशतक' ग्रंथने साचो तथा प्रमाणिक ठरावी आपतां प्रतिस्पर्धी जूथर्नु मुख मलीन थयुं अने विजयदेवसूरिजीम. तथा महो०श्री नेमिसागरजीम. आदि सागरपक्ष तेजस्वी बनेल । एटलुं ज नहि परंतु आ वादमां पू. विजयदेवसूरिजीम. ना पक्षनी न्यायनिष्ठता अने सत्यप्रियताथी प्रमुदित बनेला जहांगीर बादशाहे पू.गच्छनायकने 'जहांगीरमहातपा' अने सागरगीतार्थ पू. महोपाध्यायने 'जगजीपक' नुं बिरूद आपेल। तेमज 'श्री हीरसूरीणां विजयसेनसूरीणां च एते दिवसूरयः) एव पट्टधराः सर्वाधिपत्यभाजो भवंतु, नापरः कोपि (तिलकसूर्यादिः) कूपमंडुकप्रायः'= श्री हीरविजयजीसूरिजी अने श्री विजयसेनसूरिजीना खरा पट्टधर अने सर्वनी उपर आधिपत्य भोगवनारा आ विजयदेवसूरिजी ज छे ! ते सिवायनां कूवाना देडका जेवा बीजा कोइपण नथी।' एम कहीने विजयतिलकसूरि, आनंदसूरिजीने उत्तराधिकारित्वमांथी रदबातल करीने पोताना पट्टहस्तीनी अंबाडीमा प्रमाणिक ठरावेला ते सर्वज्ञशतक ग्रंथने स्थापन करी पू.आ.श्री विजयदेवसूरिजीम.नी विजययात्रा मांडवगढमां कढावेल ___ आ बधी ऐतिहासिक बीनाओने तथा पू. गच्छनायकोना सत्योपासक भोगोने अने शासन शिरताज-महातार्किक पू. महामहो० श्री धर्मसागरजी महाराज तेमज ते पछीना पू. सागरगीतार्थोना शासनरक्षा माटेना अपूर्व खमीर, अपूर्व धगश, तपागच्छसंनिष्ठता, समुदायहितवत्सलतादि गुणोने येन केन प्रकारेण छावरवा पूर्वक ते पूज्योने विकृतरूपे जनता समक्ष रजू करवा माटे पू. उपा० श्री रत्नचंद्रगणि, पू. उपा० श्री भाववि. गणि, पू.पं.श्री सिंहविजय गणि, मुनिश्री दर्शनविजयजी तथा कवि ऋषभदास आदिए आणसूरपक्षे रहीने 'कुमताहिविषजांगुलीमंत्र, षट्त्रिंशजल्पविचार, सागरबावनी, विजयतिलकरास, बार बोलरास' आदि विविध कूट साहित्य, सर्जन करीने अने पू. गच्छनायक श्री विजयदेवसूरिजी महाराजनी पण शरम राख्या सिवाय समाजमा ते, साहित्य वहेतुं मूक्युं. आथी तेना प्रतीकार माटे पू. गच्छाधिपति आ.श्री विजयदेवसूरिजी महाराजे पण पू. महो० श्री धर्मसागरजीम. नी शास्त्रीय प्ररूपणाओने जीवंत राखवा माटे वि. सं. १६८६ जेठ सुद-१३ शुक्रवारना रोज सात बोलनो पट्टक बहार पाडी जगतमां जाण करी। जे सात बोल आ प्रमाणे : "संवत १६८६ वर्षे श्री राजनगरे ज्ये. शु. १३ शुक्रे श्री विजयदेवसूरिभिः सपरिकर (रर्लिख्यते) १ अपरं केवलीना योगथी जीवविराधना सर्वथा (न हुँ) इ. श्री ठाणांग-भगवतीसूत्र प्रमुख समस्तग्रंथनी मेलइ ए प्रथमबोल॥२-तथा भगवती प्रमुख समस्त ग्रंथनइ अनुसारइं जमालिनइ अनंता भव कहीइ॥ द्वितीय
SR No.022027
Book TitleKupaksha Kaushik Sahasra Kiran Aparnam Pravachan Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsagar, Narendrasagarsuri, Munindrasagar, Mahabhadrasagar
PublisherShasankantakoddharsuri Jain Gyanmandir
Publication Year2002
Total Pages502
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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