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प्रस्तावना
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असमर्थता प्रकट करते हुए उनसे उपासक धर्म के ग्रहण करने की प्रार्थना की। तदनुसार भगवान् की अनुमति पाकर उसने उनके समक्ष बारह प्रकार के उपासक धर्म में से प्राणातिपातादिरूप प्रत्येक व्रत का नामनिर्देश करते हुए किस व्रत का वह देशरूप में कहाँ तक पालन करेगा, इसका विशदतापूर्वक स्पष्टीकरण किया व तदनुसार प्रतिज्ञा की। इच्छापरिमाण नामक पाँचवें अणुव्रत में तो उसने पृथक्-पृथक् सोना-चाँदी, गाय-भैंस आदि, दासी-दास आदि, वस्त्राभूषण और भोजन के विविध प्रकारों में प्रत्येक का प्रमाण किया। इस प्रकार प्रस्तुत उवासगदसाओ में श्रावक के व्रतों का स्वरूप जिस प्रकार से निर्दिष्ट किया गया है ठीक उसी प्रकार से वह श्रावकप्रज्ञप्ति में भी उपलब्ध होता है।
उवासगदसाओ में श्रमण महावीर ने आनन्द श्रावक को लक्ष्य करके सर्वप्रथम उसे श्रमणोपासक के रूप में निरतिचार सम्यक्त्व के पालन करने का उपदेश देते हुए उसके पाँच अतिचारों का उल्लेख किया है।
प्रस्तुत श्रा. प्र. में भी सर्वप्रथम (गा. २) श्रावक के स्वरूप का निर्देश करते हुए उसे सम्यक्त्व से सम्पन्न होना अनिवार्य बतलाया है। आगे (८६) वहाँ सम्यक्त्व के जिन पाँच अतिचारों का निर्देश किया गया है वे उवासगदसाओ में निर्दिष्ट (१-४४) उन अतिचारों से सर्वथा समान हैं। यहाँ (८७-९९) उनका विस्तार से विशदीकरण भी किया गया है। बारह व्रतों का स्वरूप व उनके अतिचार भी दोनों ग्रन्थों में प्रायः समान रूप में उपलब्ध होते हैं। यथा
विषय
उवा.
श्रा. प्र.
१-४५
१-४६
१-४७
१०६-१०७ २५७-२५९
२६० २६३ २६५
२६८ २७०-२७१
२७३ २७५-२७६
२७८ २८०
१-१६ व ४८ १-४८
१. स्थूलप्राणातिपातविरति
उसके अतिचार २. स्थूलमृषावादविरति
अतिचार ३. स्थूलअदत्तादानविरति
अतिचार ४. स्वदारसन्तोष
अतिचार ५. इच्छापरिमाण
अतिचार ६. दिग्व्रत
अतिचार ७. उपभोगपरिभोगपरिमाण
अतिचार ८. अनर्थदण्डव्रत
अतिचार ९. सामायिक
अतिचार १०. देशावकाशिक
१-४९
१-५०
२८३ २८४
१-५१
२८६-२८८ २८९-२९०
२९१ २९२ ३१२
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