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तृतीयशिक्षापदप्ररूपणा
देसे सब्वे य दुहा इक्किको इत्थ' होइ नायost |
सामाइए विभासा देसे इयरम्मि नियमेण ॥ ३२२ ॥
देश इति देशविषयः, सर्व इति सर्वविषयश्च द्विधा द्विप्रकार एकैक आहारपौषधादिरत्र प्रवचने भवति ज्ञातव्यः । सामायिके विभाषा कदाचित्क्रियते कदाचिन्नेति देशपौषधे । इतरस्मिन् सर्वपौषधे । नियमेन सामायिकम्, अकरणादात्मवंचनेति ।
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भावत्यो पुण इमो - आहारपोसहो दुविहो देसे सव्वे य । देसे अमुगा विगतो आयंबिलं वा एक्स वा दो वा । सव्वे चउव्विहो आहारो अहोरतं पच्चक्खाओ । सरीरसक्कारपोसहो न्हाणुव्वट्टण वन्नग - विलेवण- पुप्फ- गन्ध तंबोलाणं वत्थाहरणपरिचचागो य । सो दुविहो देसे सव्वे य । देसे अमुगं सरीरसक्कारं न करेमि सव्वे सव्वं न करेमि त्ति । बंभचेरपोसहो वि देसे सव्वे य। देसे दिवा ति वा एक्स वा दो वारे त्ति, सच्चे अहोरतं बंभचारी भवति । अव्वापारपोसो वि दुविहो देसे सब्वे य । देसे अमुगंमि वावारंमि, सव्वे सव्वं वावारं चैव हल-सगड-घरकम्माइयं ण करेमि । एत्थ जो देसपोसहं करेइ सो सामायिक करेइ वा न वा । जो सव्वपोसहं करेइ सो नियम कसामाइओ । जइ ण करे तो पियमा वंचिज्जइ । काँह ? चेइयघरे साहुमूले वाघरे वा पोसहसालाए वा । उम्मुक्कमणि-सुवन्नो पढतो पोत्यगं वा वायंतो धम्मज्झाणं वा .झाइ जहा एए साहुगुणा अहमसत्यो मंदभग्नो [गो ] धारेउं विभासा ॥३२२॥
यहाँ ( आगम में ) उक्त आहार पौषधादिमें प्रत्येक देशविषयक और सर्वविषयकके भेदसे दो प्रकारका है, यह जानना चाहिए। देशविषयक आहारपोषधादिमें सामायिक विषयक विकल्प है - कदाचित् वह की जाती है और कदाचित् नहीं भी की जाती है, परन्तु सर्वविषयक पौषधमें वह नियमसे की जाती है ।
विवेचन - अभिप्राय इसका यह है कि आहारपोषध में जो आहारका परित्याग किया जाता है वह देश या सर्वरूपसे किया जाता है। इनमें देशरूप में जैसे- मैं अमुक विकृति ( घृतादि ) या आचाम्ल ( भातका माड़) में एक या दो को लूँगा, अथवा एक बार या दो बार लूंगा, इस प्रकारसे जो आहारविषयक नियम किया जाता है उसे देशविषयक आहारपोषध समझना चाहिए। चारों प्रकारके आहारका जो दिन-रात के लिए प्रत्याख्यान किया जाता है, यह सर्वविषयक आहारपोषध कहलाता है। शरीरसत्कारपोषध में स्नान, उद्वर्तन ( उबटन ), विलेपन, पुष्प, गन्ध व ताम्बूल आदि तथा वस्त्राभरण आदिका परित्याग किया जाता है। वह भी देश अथवा सर्वरूपमें किया जाता है । उक्त शरीर संस्कारों में मैं अमुक शरीर संस्कारको नहीं करूँगा, इस प्रकार से किसी विशेष शरीर संस्कारका त्याग करना, यह देशशरीर संस्कार पौषध कहलाता है । समस्त शरीर संस्कारोंके त्यागको सर्वरूप में शरीर सत्कार पौषध जानना चाहिए । ब्रह्मचर्य पौषधमें मैं दिन में, रात्रिमें अथवा एक या दो बार भोग करूंगा; इस प्रकारके नियमको देश ब्रह्मचर्य पौषध कहा जाता है । दिन-रात ब्रह्मचर्य के पालनका नाम सर्वब्रह्मचर्य पोषध है । अव्यापार पौषध भी देश और सर्वके भेदसे दो प्रकारका है। उनमें अमुक व्यापारको मैं नहीं करूंगा, इस प्रकारके नियमका नाम देश अव्यापार पोषध और हल व गाड़ी आदि किसी भी कर्मको मैं नहीं करूंगा, इस प्रकारके नियमका नाम सर्व अव्यापार पोषध है। चार प्रकार के पौषधमें जो श्रावक देश पौषधको करता है वह सामायिक करे अथवा नहीं भी करे, इसका नियम
१. अ एक्केक्को एत्थ । २. अ अपुगा विपती आयंविबंला एक्कंसि । ३. अ घरकरिकम्मा ण ।
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