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चतुर्विधदाननिरूपण
एवं उत्तम पात्रोंका सदा आदर करते हैं इसलिये उनको भूपाल कहा है । इस प्रकार भूपाल शब्दकी निरुक्ति है । इस बातको समझकर राजावोंको अभयदानके पालन करनेका आदेश दिया गया है ॥९५॥
एतेषां तु दुरथिनामघवतामापत्ति भाजां नृणां । दत्वा भीतिकरं विलिख्य लिखितं पत्रं वचः संपुटे ॥ मा भैषीगणकैः पुरोऽपि जगतामुक्त्वा कृतप्रत्ययः । सन्नद्धाखिलमोघवाक्स च यथा लोको यथा वर्तते ॥९६ सामोघोपि तथा तथा विकुरुते द्रव्यातिकांक्ष्येन स । हृत्वा तविणं यदा तदखिलं निर्विश्यते तेन सा, क्ष्वेडान्नात्सरतीव जंतुरमला लक्ष्मीनिरेति क्षणात् ॥ तस्माद्दुःखकरक्रियातिचतुरैर्भव्य समालोच्यताम् ॥ ९७ अर्थ-जो दीन, पापी, संकटग्रस्त मनुष्य हैं उनका भय दूर करना चाहिये । तथा उनको लिखकर और बोलकर अभय देना चाहिये । अर्थात् तुह्मारा भय मैं दूर करूंगा ऐसा वचन कहकर उनको संतष्ट करना चाहिये । परंतु ऐसा अभयवचन देकर भी यदि वह रक्षण नहीं करेगा । द्रव्यके लोभसे संकटग्रस्तोंका धन छीन लेगा और उसको उपभोग लेगा तो लक्ष्मी उस राजाके पास न रहकर अन्यत्र जायगी। जैसे विषसे प्राणी दूर भाग जाता है इस वास्ते प्राणिओं को दुःख देनेवाले कार्य छोड देना चाहिये । हे भव्य हो आप इनका खूब विचार कर ऐसे कार्योका त्याग कगे ॥९६ ॥९७॥
चित्ते समनि पत्तने स्वविषयेऽपुण्यस्य यस्यान्वहं । दुर्भावोऽशनपीडना बहुविधा वृत्तिर्भवेन्नारकी ।। दुष्टायत्तविधिर्जनः सुजनता रोरूयते क्लिश्यते । लक्ष्मीनिर्गमनाय लक्षणमिदं संतो जुगुप्तस्य हि [, ॥९८॥ अर्थ-जो राजा पुण्यहीन होगया है वह अपने दुर्भारके वशी