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दानाविधिद्रव्यदातपात्रलक्षण
अर्थ-शांत, गुप्तियुक्त, सुंदरचरित्र ऐसे दातावोंको देखकर ममुष्य विनय करते हैं। शत्रु स्वयं नाशको प्राप्त होते हैं, कषायसे दूषित राजा शांतिको प्राप्त करते हैं, शेर, सर्प सरीखे क्रूर प्राणी प्रशांत होते हैं और ऐसे व्यक्तिको वे क्रूर प्राणी स्पर्श भी नहीं करते हैं। मनुष्य हितवचन बोलते हुए सदा सेवामें तत्पर रहते हैं ॥ ६ ॥
कुलाचलोत्पन्ननदीव केचित् । वर्षाचलोत्पन्ननदीव केचित् ॥ नदीव वन्या कतिचिच्च केचित् ।
तटाकतोयोच्छ्रसनं यथा स्युः ॥ ७॥ अर्थ-कोई दाता कुलाचल पर्वतोंसे निकलनेवाली नदियोंके समान हैं जिनमें सदा पानी बहता रहता है, कोई दाता बरसातके समयमें बहनेवाले नदियोंके समान है अर्थात् कुछ महिने तक ही बरसातकी नदियां बहती हैं, और कोई दाता जंगलके नदियोके समान है । कोई तालाव को फोडकर बहनेवाले जलके समान है ॥७॥
नदीतटद्वयोत्पन्ना यथाशरमहीक्षवः
सर्पाचावासभूताः स्युर्न परोपकृतिक्षमाः ॥ ८॥ अर्य-नदीके दोनो तट में उत्पन्न दर्भ और जंगली ईख सदि दुष्ट प्राणियोंके निवास के लिये काम में आते हैं। परोपकार कर. नेके काम में नहीं आसकते हैं । इसी प्रकार जो अपात्रोंको दान देते हैं वे दुष्कार्योकी वृद्धि में सहायता पहुंचाते हैं, सत्पात्रोंका उपकार नहीं करते हैं ॥ ८ ॥
पात्राणि मत्वा ददते कुदृग्भ्यो । वित्तानि मिथ्यात्वमुपत्रनंति ॥ दुष्टाय दुष्टत्वमयंति मूढाः । पापाय येऽहांसि च येत्र ते ते ॥९॥