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अष्टविधवानलक्षण
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कारुण्यदानका लक्षण. रोगिणं निगलितं च बाधितं दण्डितं क्षुधितमंबुपातितं । वह्निपीडितमवत्यवेक्ष्य कारुण्यदानमिदमीरितं बुधैः ॥ १३ ॥
अर्थ-रोगी, ग्लानी, बंधनबद्ध, दुःखी, दण्डित, भूखा, पानी में गिरे हुए, अग्निमें जलते हुए मनुष्य को देखकर करुणासे रक्षा करना उसे कारुण्यदान कहते हैं ॥१३॥
औचित्यदानका लक्षण. जैनबंधुयुगसेवनातुरान्स्कंधवाहकजनानपि नीचान् । तर्पयंत्यशनर्वाटिकाभिरौचित्यदानमिदमुक्तमाईतैः ॥ १४ ॥ .
अर्थ-जिनेंद्र भगवंतकी सेवा करनेमें तत्पर नीच जात्युत्पन्न पल्लकी ढोनेवाले मनुष्योंका भोजन, तांबूल इत्यादिसे सत्कार करना औचित्यदानके रूपमें जैनाचार्योंने कहा है ॥ १४ ॥
यो राजा वधकोऽनृतो धनहरोऽन्यत्रीहरस्सस्पृहः। संतस्तद्विषयं श्रयंति न सदा नो विश्वसंतीह तं । तस्मै नो ददते धनादि च यथा तद्वद्गुणी धार्मिको । . दाता दानफलान्यथा खलु तथा रत्नानि भाग्यानि च ॥१५
अर्थ-जो राजा हिंसा करता हो, झूठ बोलता हो, परस्त्री और परधनके हरण करनेमें आसक्त हो, लोभी हो, उस राजाके देशको सज्जन लोग आश्रय नहीं करते हैं और न उसे कोई विश्वास करते हैं और उसे धनादिकसे सत्कार भी नहीं करते हैं। इसी प्रकार धार्मिक कहलानेवाले दानी मनवचनकायकी शुद्धिसे रहित होकर हिंसादिक क्रियामें प्रवृत्त होवें तो उन्हे दानका कोई फल नहीं मिल सकता है अपितु उसका ऐश्वर्य पापके कारण दिनप्रति दिन घटता ही जाता है ॥१५|| १ यो दत्ते गायकादिभ्यः काले काले यथोचितं ।
ज्ञात्वापवाभीत्या वा दानमौचित्यमीरितं ॥