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दानशासनम्
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योंको एवं अन्यधर्मप्रेक्षकोंको सत्कार करके भोजनादिसे संतुष्ट करना सामान्यदान' कहलाता है ॥ ८ ॥
दोषददानका लक्षण. निजपापार्जितं द्रव्यं द्विजेभ्यो ददते नृपाः।
तैर्नष्टा राजभिर्विप्रा दानं दोषदमुच्यते ॥ ९॥ अर्थ- राजा लोग अपने पापसे उपार्जित द्रव्यको · ब्राह्मणोंको दान देते हैं तथा उन पापोपार्जित द्रव्यसे वे द्विज बिगडते हैं । इस प्रकारके दानको दोषद दान कहते हैं ॥९॥
उत्तमदानका लक्षण श्रीमज्जिनेंद्रसाकल्यरूपधारिमुनीश्वरान् ।
सत्कृत्य दत्तमन्नादिदानमुत्तममारितम् ॥ १० ॥ अर्थ--श्रीभगवान जिनेंद्रके साक्षात् रूपधारी दिगंबर मुनियोंको सत्कार कर विधिप्रकार आहारादि-दान देना उत्तमदान कहलाता है ॥१०
___ मध्यमजघन्यदान लक्षण. दत्तं मध्यमपात्राय दानं मध्यममुच्यते ।
द्रव्यं जघन्यपात्राय जघन्यं दानमिष्यते ॥ ११ ॥ अर्थ-एकदेशत्रतवारी मध्यमपात्रके लिए प्रदत्तद्रव्य मध्यमदान और जघन्यपात्र के लिए प्रदत्त द्रव्य जघन्यदान कहलाता है ॥११॥
___ संकीर्णदानका लक्षण. जिनोत्सवसमाहूतपात्रापात्रादिकानपि । .
सत्कृत्य दत्तमन्नादि दानं संकीर्णमीरितं ॥ १२ ॥ अर्थ-जिनोत्सबके लिए निमंत्रित अर्थात् पंचकल्याणिकप्रतिष्टा इत्यादि कार्योमें बुलाए गए अथवा जिनभक्तोंके विवाहादिकार्यों में आमंत्रित पात्र, अपात्र आदिको योग्य उपचार कर आहार, वस्त्र, तांबूल इत्यादिसे सत्कार करना संकीर्णदान कहलाता है ॥ १२ ॥ .