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शास्त्रादानविचार
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नेकी इच्छा होनेपर भी श्रुतविषयका स्मरणाभाव व बुद्धिका भ्रंश होना, (४) निरंतराय, इच्छा, बुद्धि, स्मृति आदिके होनेपर भी रोगयुक्त शरीरके होना, (५) निरंतराय, इच्छा, बुद्धि, स्मृति व आरोग्यके होनेपर भी गुरुशिष्योमें आपसमें द्वेष होना, (६) निरंतराय, इच्छा, बुद्धि, स्मृति, आरोग्य व गुरुशिष्योमें प्रेम होनेपर भी गुरु शिष्योमें मनोविकलताका होना, (७) उपर्युक्त सभी बातोंके होने पर भी दुर्बुद्धि उत्पन्न होना, (८) कदाचित् उपर्युक्त बातोंके साथ सुबुद्धि रही तो भी जडता अर्थात् मंदबुद्धि होना, ये आठ बातें उदासीनताके लक्षण हैं । ये
आठ बातें संसारमें सम्यग्दृष्टि व विद्वानोंके प्रति की गई उदासीनतासे - मनुष्यको प्राप्त होती हैं ॥ ५३॥
विद्वानोंके अनादरसे होनेवाली दस बातें सदाचि क्रुदूर्तताक्षानुवृत्तिनिद्रातंद्राभणं विस्मृतिश्च ।। पाठाशक्तिमूर्खतास्पष्टवाक्स्युरज्ञानाद्यद्भूतजाता विकाराः ॥५४॥ . अर्थ-सम्यग्मार्गके उपदेश देनेवालोंके प्रति क्रोधित होना, धूर्तता, इंद्रियोंके आधीन होना, शास्त्रश्रवणके समय निद्रा आना, मालस्य आना, जंभाई आना, विस्मरण होना, कितनी ही वार पाठ करनेपर भी पाठ न होना, मूर्खता, तोतली बोली, ये दस बातें विद्वानोंके अनादरसे होती हैं, या यों कहिये ये दस बातें * अज्ञान भूतसे उत्पन्न विकार हैं ॥ ५४॥
__ अल्पवेतनका निषेध सुतानामुपदेष्टणां दत्वाल्पं तैर्बहूद्यमान् । ये कारयन्ति तेषांश्च ज्ञानपुस्तादिनाशनम् ॥ ५५ ॥
* भूतास्त्यजति बलिदानगुणेन मयं । त्याज्याः सुमंत्रिजनरक्षणदक्षमंत्रः ॥ जाड्यग्रहा न बलिदानगुणेन मयै । त्याज्या न दिव्यमुनिदत्तगुरुत्रिरत्नैः ॥ ..