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दानशासनम्
मूर्खलोग विद्वानोंका अनादर करते हैं: - लोकोपकर्तृन् कृषिकान् पोषयंति यथा नृपाः। .
लोकोपकर्तविबुधान्यक्कुर्वति तथा जडाः ॥५०॥ अर्थ-लोकको उपकारकरनेवाले किसानोंको जिसप्रकार राजालोग पोषण करते हैं उसी प्रकार मूर्खलोग लोकोपकार करनेवाले विद्वानोंका अपमान करते हैं ॥ ५० ॥
शास्त्रोपदेशकके अभिप्रायका घात न करें शास्त्रोपदेष्टुराकूतघातनादतितानवान् ।
श्रोतृणां श्रुतशास्त्राणां पक्कबुद्धिश्च नश्यति ॥ ५१॥ अर्थ-शास्त्रोपदेश देनेवालोंके अभिप्रायको घात करनेसे उनको अत्यधिक दुःख होकर श्रोता व अनेकवार शास्त्र सुनकर जो बुद्धिमान हुए हैं उनकी पक्कबुद्धि भी नष्ट होती है ॥५१॥ ..
उपदेशकोंके प्रति उदासीन नहीं होवे. यावधावदुदासीनमुपदेष्टरि कुर्वते ।
तावत्तावद्विपकृष्टं निर्गच्छति सरस्वती ।। ५२ ॥ अर्थ-यह मनुष्य शास्त्रके उपदेशको देनेवाले उपदेशकोंके प्रति जितना २ उदासीन होता जाता है, उतना ही उससे सरस्वती दूर चली जाती है ।। ५२ ॥
उदासीनलक्षण विघ्नाट्स्मृनिधीभ्रंशरुग्विद्वेषणवैकलम् ।
दुर्मेधाज्ञत्वमित्यष्टबाधोदासीनलक्षणम् ।। ५३ ॥ अर्थ-(१) शास्त्र सुननेमें अंतराय उत्पन्न होना, (२) निरंतराय होनेपर भी शास्त्र सुननेकी इच्छा न होना, (३) निरंतराय व सुन