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दामशासनम्
अर्थ - जिस प्रकार सूर्य अंधकार को दूर करके समस्त पदार्थोंको अपने करों (किरणों) से दिखाता है, उसी प्रकार ज्ञानसूर्यरूपी पिता का कर्तव्य है कि वह अपने पुत्रका अज्ञानांधकार दूर कर अपने हाथसे जीवादि द्रव्योंको स्पष्ट रूपसे दिखलावें ॥ २१ ॥
शास्त्रदानफल
स्वाध्यायोचितवस्तुभिर्विनयवागुत्साहनानंदनै- । ये बुद्धिं परिवर्धयति यतिनां रक्षति शास्त्रामृतैः ॥ ते साधुजिनभाषितागमघरान्कुर्वति शंसति ता- । नचेत्यर्थचयैः स्तुवंति विनमंत्यग्रे श्रुतज्ञानिनः ॥ २२ ॥
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अर्थ – जो सज्जन स्वाध्यायोचित पुस्तक वेष्टन आदि द्रव्योंको प्रदान कर विनयवचन, उत्साह व आनंदके द्वारा साधुवोंकी बुद्धिकी वृद्धि करते हैं, एवं शास्त्ररूपी अमृत से साधुवों की रक्षा करते हैं, वे साधुवोंको जैनागमके धारक बनाते हैं, एवं जो उन साधुवोंकी अनेक प्रकार के द्रव्योंसे पूजा करते हैं, प्रशंसा करते हैं व नमस्कार करते हैं, वे आगे के भवमें श्रुतज्ञानी होते हैं अर्थात् सकल श्रुतज्ञान को प्राप्त करते हैं ॥ २२ ॥
जिनबिंबपूजाफल
जिनरूपधरं चित्रं सद्द्द्रव्यैरचयति ये ।
जिनपूजाफलं तेऽत्र लभतेऽनेकधा पुरः ॥ २३ ॥
अर्थ - जो सज्जन भक्तिसे जिनेंद्र भगवंतके रूपको धारण करनेवाले जिनबिंबकी भक्तिसे अनेक उत्तम द्रव्योंसे पूजा करते हैं, वे इसी जन्ममें साक्षात् जिनेंद्र की पूजा करनेके सातिशय फलको प्राप्त करते हैं । एवं आगे के जन्म में अनेक प्रकारसे ऋद्धिसहित संपत्ति सुख आदि फलको प्राप्त करते हैं ॥ २३ ॥