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शास्त्रदोनविचार
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अर्थ-जो सज्जन पढनेवाले व उपदेशदेनेवाले विद्वानोंको पुस्तक, घर, देहसंरक्षणके साधन आदिको प्रदान कर उनको निराकुल बनाते हैं, वे सम्यग्ज्ञानको प्राप्त करते हैं, एवं क्रमसे मोक्षको भी प्राप्त करते हैं ॥ १८ ॥
गुरुभक्तिका फल निजगुरुपदसद्भक्तिर्यस्य सदा वसति बुद्धर्जाड्यम् ।
मुगुरुपसादभानोस्तमोऽपसरतीव सुमतिमालभते ॥१९॥ अर्थ-जिसकी भक्ति अपने गुरुके चरणोंके प्रति सदा काल रहती है उसकी बुद्धि की जडता शीघ्र ही गुरुके प्रसादसे दूर होती है। जिसप्रकार सूर्यके उदयसे अंधकार दूर होता है उसी प्रकार उसका अज्ञान दूर होकर वह सुबुद्धि को प्राप्त करता है ॥ १९ ॥
. सज्जन कभी शास्त्राध्ययन छोडते नहीं मां दीपनमस्ति नैव भुवने मुंचंति किं भोजनम् । रोगोऽसाध्य इहाभवद्यदहितं जेमंति किं लौकिकाः ॥ उद्योगो बहुदोषदोपि सकलोद्योगांस्त्यजंतीति किं । यच्छास्त्रश्रुतिपाठमल्पमतयस्सतस्त्यजंतीति किं ॥२०॥ अर्थ—इस लोकमें पाचनशक्ति न हो तो क्या मनुष्य भोजन करना छोडते हैं ? नहीं । रोग असाध्य हुआ जानकर अपथ्यपदार्थोंका सेवन करते हैं ? कभी नहीं । बहुतसे दोषपूर्ण उद्योगोंको जानकर • समस्त उद्योगोंको छोडते हैं ? कभी नहीं । इसी प्रकार अपनी बुद्धि मंद व अल्प जानते हुए भी सज्जन शास्त्रोंका श्रवण व पठनको छोडते हैं ! कभी नहीं ॥ २० ॥
पुत्रका अज्ञान दूर करनेका उपदेश तमो निवार्य सकलमिवार्को दर्शयन्करैः । तुजा पितेव ज्ञानार्को जीवादिद्रव्यमुल्वणम् ॥ २१ ॥