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________________ दानशासनम् nirmirmix अर्थ-जो मनुष्य देवसंकल्पित द्रव्यको अपहरण करता है उसके प्रति बंधु राजा आदि उससे वैर विरोध करते हैं। उसके तेजका क्षय होता है, रोगादिबाधा बढती है, पापकी वृद्धि होती है, पुण्यका क्षय होता है, वह तिर्यंच या नरकगतिमें जाता है ॥ २२० ॥ प्रशंसाकृतदान कृतात्मवर्णनं पात्रः श्रुत्वा हृष्टाशयांचितं । दानं सर्व प्रशंसाकृद्धंदिभ्यो दत्तदानवत् ॥ २२१ ॥ अर्थ-~पात्रोंके द्वारा की हुई अपनी प्रशंसा से प्रसन्न होकर दिया हुआ दान बंदीजनोंको दिए हुए दामक्के समान प्रशंसाकर दान है ॥ २२१ ॥ .... निष्फलद्रव्य ... - अत्युच्चाः पाटला. स्थूला निष्फलाः कुमुमोद्भवाः । , ... साध्वयोग्या भवेयुस्ते दातारः कतिचिद्यया ।। २२२ ॥ *. अर्थ-जिस प्रकार पुष्पसे उत्पन पाटल वृक्ष बहुत ऊंचा, बडा, होनेपर भी निष्फल हुआ करता है, इसी प्रकार किसी सज्जन के पास बहुत धन कनक रहने पर भी कह साधुके लिए अयोग्य हुआ करता है, अर्थात् पात्रदानके काममें उसका धन नहीं आता है। अतएव व्यर्थ है॥ २२२ ॥ देवादिद्रव्यहरणफल देवगुर्वादिभव्यानां योऽर्थानपहरत्यपि। स भिन्नपद्माकरवत्स्यात्पुण्यरहिताशयः ॥ २२३॥ अर्थ-जो देव, गुरु आदिभव्योंके अर्थको अपहरण करता है उसकी हालत टूटे हुए तालावके समान है । उसके हृदयमें पुण्यका अभिप्राय नहीं है । अर्थात् वह पापी है ॥ २२३ ॥ . . .
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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