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________________ २४ दानशासनम् अर्थ-मन व वचनके विना केवल दूसरोंके कहने से काय से ही जो दान करता है वह दाता उस चमचेके समान है जो परोसे जानेवाले रसायनों के स्वादको नहीं जानता है । जिस प्रकार तोल, मापके सेर वगैरे तुलनेवाली चीजोंके मोल को नहीं जानते उसी प्रकार उस दाताकी हालत है ॥ १२५ ॥ उपरोधादुपालभाद्भासते कायदानिन: ॥ संक्लेशाः पशवो भारवाहाः केचिद्यथा तथा ॥१२६॥ अर्थ-दूसरों के अनुरोध से व दूसरे निंदा करेंगे इस भयसे, जो केवल काय से दान देते हैं वे सदा क्लेश को सहन करनेवाले, भारवहन करनेवाले बैल घोडे आदि पशुओंके समान हैं ॥ १२६ ॥ पात्रे शंपेव या भक्तिर्येषां दानं कृतं च तैः ।। राजयोग्यगना अश्वास्त एक स्युभवांतरे ॥ १२७ ।। अर्थ-पात्रोंके प्रति बिजली के समान क्षणिक भक्ति को रखकर जो दान देते हैं वे उत्तरभवमें राजाके लिए बैठने योग्य हाथी, घोडा आदि होकर उत्पन्न होते हैं ॥ १२७ ॥ भिन्नभावदत्तदान भिमभावःक्षणे भूत्वा दानेऽगेन कृते फलम् । स्त्रीभावे तुरजनौ भिन्ने यथान्यामसुतो भवेत् ॥१२८॥ अर्थ- यदि दान देते समय दाताने मनमें भिन्न भाव रखकर केवल कायसे दान दिया तो उसकी हालत ठीक उसी प्रकार होती है जिस. प्रकार कि पुत्रात्पत्ति के समयमें स्त्रीने यदि मनमें परपुरुष की भावना की तो वह पुत्र भी दूसरोंके समान ही होता है ॥ १२८ ॥ मनोवचोविना केचिद्भासते कायदानिनः। संक्लेशादोगजोऽश्वोंष्ट्राः केचिद्वारवहां यथा ॥
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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