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दानशासनम्
.: अर्थ-दानकी महिमा अचिंत्य है, वह त्रिलोकमें कीर्ति करनेवाला है, देहात्महितको करनेवाला है, संसारमें सुखको प्रदान करनेवाला है, सबके प्रेमको संपादन कर देनेवाला है, अनेक गुणोंको प्राप्त करा देनेवाला है, संपत्तिको प्रदान करानेवाला है, इच्छित कार्यकी पूर्ति कर देनेवाला है। स्वर्गगतिको प्राप्त करानेवाला व नीच गतिका नाश करनेवाला दान है, विशेष क्या ? मोक्षलक्ष्मीको भी प्राप्त करादेता है, देहकांति, आयु, बल, बुद्धि आदिको बढाता है। इस प्रकारकी विशेषताओंसे युक्त दानको बुद्धिमान् लोग सदा करें ॥ ७० ॥
सद्रूपान्वयवृत्तशीलगुणसच्छिक्षामतिर्लक्षणम् । धान्यं वाहनवस्तुवित्तपितृमातृभ्रातृभार्यात्मजं ॥ चक्रित्वं सकलं शुभं भवमुखं भुक्त्वाष्टजन्मांतरे । निर्वाणं कृतिनां भवेतदखिलं सत्पात्रदानादिदम् ॥७१॥ अर्थ-सत्पात्रदानके फलसे यह जीव सुंदररूप, विशुद्धवंश, उत्तम चारित्र, पवित्र शील, श्रेष्ठ गुण, विशाल ज्ञान, कुशाग्रबुद्धि व शुभलक्षणोंको प्राप्त करता है । एवं धान्य, वाहन, वस्तु, धन, पिता, माता, भ्राता व पुत्र आदि सभी इष्टपरिकरोंसे सुसंपन्न रहता है । सकल चक्रित्वपदको प्राप्त करता है । इसप्रकार आठ भवतक संसारके उत्तम सुखोंको भोगकर वह मोक्ष साम्राज्यका अधिपति बनता है॥७॥ + सौधर्मादिषु कल्पेषु जायते पात्रदानिनः ।
साध रमंते निक्लेशा देवस्त्रीभिस्सदा नराः ॥ ७२ ॥ अर्थ-सत्पात्रदानी जीव सौधर्मादि स्वर्गीय कल्पोंमें जाकर जन्म
+ अपात्रदानिनः केचिन्मृत्वा षण्णवतिष्वपि । अंतीपेषु जायंते लांगूलैकांघ्रिमानवाः ॥ सत्पात्राय प्रदत्तेऽन्ने स्वशक्त्या भक्तिपूर्वकम् । कुदृष्टिमानवाः केचिजायते भोगभूमिजाः ॥