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क्षनशासनम्
अर्थ – जो अपने पात्रोंकी भी रक्षा करते हैं और मिथ्यापात्रोंका भी पोषण करते हैं उन सबको कुपात्र कहा है । वे सदा अत्यधिक दुःख भोगते हैं ॥ १०८ ॥
पुनः तीन प्रकारके पात्रोंका वर्णन. विचित्रभावैर्नयहेतुदर्शनैस्सुधर्ममार्गे प्रतिपादयंति ये । मातेव शिक्षामनुबंधकारिणस्तान्कार्यपात्रं प्रवदति साधवः ॥ अर्थ- - अनेक प्रकारके परिणामोंसे एवं नयविवक्षाको बतलाते हुए जो धर्ममार्गका प्रतिपादन करते हैं, जो मातांके समान योग्य हितोपदेश देते हैं उन्हें साधुगण कार्यपात्र कहते हैं ॥ १०९ ॥ कार्यपात्र.
प्रगल्भभृत्या वरकार्यको वेदाः प्रयोजिताः स्वाम्यनुकूलवर्तिनः । महत्सु कार्येष्वनुयायिनो नरास्तान्कार्यपात्रं प्रवदति साधवः ॥
अर्थ – जो सेवक अत्यंत कार्य कुशल हैं और स्वामी के अनुकूल वृत्ति रखनेवाले हैं एवं बड़े २ कार्यमें भी अनुसरण करनेवाले हैं या साथ देनेवाले हैं उनको भी कार्यपात्र कहते हैं । कार्यपात्रों को भी दान देना चाहिये ॥ ११० ॥
कामपात्र.
संभोगयोग्या ललना मनोज्ञा यदंगसंगाल्लभते मनस्सदा ॥ सुखं हृषीकोद्भव सौख्यभाजां ताः कामपात्रं प्रवदति साधवः ॥ अर्थ – जो अपनी सुंदर स्त्री संभोग करनेके लिये योग्य है जिसके अंगस्पर्श करनेसे एक विशिष्ट मानसिक सुख होता है उसे ऋषिगण कामपात्र कहते हैं ॥ १११ ॥
पुनः पंचविधमाह
जिने जिनगुरौ संघे यस्य साधु मनोऽचलं ॥ वर्तते नेतरत्रासौ समयीत्युच्यते बुधैः ॥ ११२ ॥