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दानशासनम्
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जघन्य पात्र. पंचाणुव्रतरहितं सप्तव्यसनप्रवृत्तिकरणं चटुलं । मुनयो वदंति पात्रं ललितांगमिव द्युगामिनं सुदृशं ॥९५ अर्थ--जो पंचाणुव्रतसे रहित है, सप्तव्यसनमें प्रवृत्ति करनेमें चतुर है, परंतु सम्यग्दृष्टि है ऐसे ललितांगके समान स्वर्ग जानेवाले मनुप्योंको मुनिवर जघन्यपात्र कहते हैं ॥ ९५ ॥
धर्मकदीपावजनी वादी नैमित्तिकी तपस्वी च । पंचैते मुनिवृषभा जिनशासनदीपकाः प्रशस्ताश्च ॥९६॥ अर्थ-जिनधर्मी मुनीको धर्मक अथवा समयिक कहते हैं। निरतिचार महाव्रतोंको पालन करनेवाले आचार्य मुनिको दीपाव्रजनी कहते हैं। वादित्वगुणसे धर्मकी प्रभावना करनेवाले मुनिको वादी कहते हैं । ज्योतिःशास्त्र, मंत्रशास्त्र व निमित्तशास्त्रको जाननेवाले मुनियोंको नैमित्तिक कहते हैं। मूलोत्तर गुणोंको धारण करनेवाले वृद्ध मुनीश्वरको तपस्वी कहते हैं। ये पांच प्रकारके श्रेष्ठ मुनीश्वर जिनशासनकी प्रभावना करनेवाले और प्रशंसनीय मुनि माने जाते हैं।९६॥ भार्या मातरमंतरेण तरुणीगहं व्रती नो विशे-। दाविष्टे सति योषिता जगति भी निंदा भवेदन्यया ॥ साकं हासविचादनर्मधनदानादानभाषादिका- । न्दृष्ट्वा निंदति सव्रतं स विबुधोऽन्यस्त्रीगृहं को विशेत् ॥
अर्थ-जो शीलवान् पुरुष है वह अपनी पत्नी या माता जिस घरमें हो उसे छोडकर अन्य किसी घरमें कोई परस्त्री अकेली हो उस में कभी प्रवेश न करें । ऐसा प्रवेश करनेपर लोकमें उसकी निंदा होती है । और परस्त्रियों के साथ हास्य, विवाद, धनका लेनदेन, बोलना आदि भी नहीं करना चाहिये । इसे भी देखकर लोग उसकी