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दानशासनम्
चंद्रालोकनतोऽब्धिवच्च ललनालोकात्समुज्जभते । पापाब्धिः सुकृतं यथा गजमुतो नश्येत्स सिंहेक्षणात् ॥८५ अर्थ-जिस प्रकार गरुड-मंत्रका ध्यान सर्पके विषको नष्ट करता है, आत्मध्यान पापको नष्ट करता है उसी प्रकार तरुणीध्यान पुण्य का नाश करता है। चन्द्रमाको देखनेसे जिस प्रकार समुद्र उमड आता है, उसी प्रकार स्त्रियोंको देखनेसे पापसमुद्र उमड आता है । जिस प्रकार सिंहको देखकर हाथीका बच्चा शक्तिविहीन होजाता है उसी प्रकार स्त्रियोंको देखने से सुकृत नष्ट होता है ॥ ८५ ॥ स्वर्गोऽधःपातुकः स्वास्थितसुखिविबुधान्नारको दुःखिजीवा-। नू लोकं स मयों भ्रपयति नरकं स्वर्गलोकं दिवाभाः॥ कांताः स्वाध:प्रदेशस्थितिकृतिचतुराः स्वाश्रितानां जनानां । . स्याल्लोकाधःस्थितित्वं दधति बुधवरं दुर्गतियोषिताभ्यः ॥८६॥
अर्थ-स्त्रियोंका संसर्ग मनुष्यको स्वर्गसे भी नीचे गिरानेवाला है । और उनके संप्तर्गसे दूर रहनेवाले नारकी भी कालांतरमें ऊपर आते हैं। पुरुषोंसे नीचे रहनेवाली स्त्रियां हरतरहसे पुरुषोंकी दशा नांच करने के लिये समर्थ हैं। जो स्त्रियोंके पाशमें पड गये हैं वे अवश्य लोकके नीचे अपनी जगह कायम करते हैं। उनको अनेक नरकादि दुर्गति होती है ॥ ८६ ॥
कासंग सुगंधकृत्रिवलयः शूनी च वेणी कशा । चापो भ्रः कणयाः कटाक्षवलनाः श्वेडो मृदूक्तिः कुचौपुण्यापातनकंदुकौ पदहतिर्दूषीविषाखाहसिः ॥ हासेनारि सुतान्कर्षति वनिता नीतिस्त्वमोघा भवेत् ॥८७॥ अर्थ-स्त्रियोंका शरीर बंदीखाने के समान है। उनके सुंदर नेत्र मनुष्यको अंधा बनानेवाले हैं । तीन वलय हिंसाके स्थान हैं । वेणी