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दानशासनम्
द्रव्यलक्षण. प्रणम्य परमात्मानं चंद्रप्रभजिनेश्वरं । पात्रभुक्त्युचिताशेषद्रव्यलक्षणमुच्यते ॥१॥ अर्थ-परमात्मा श्रीचंद्रप्रभस्वामीको नमस्कार कर पात्रोंके भोजनके योग्य सर्व द्रव्योंका लक्षण इस प्रकरणमें कहेंगे ऐसी आचार्यश्री प्रतिज्ञा करते हैं ॥१॥
द्रव्यलक्षण. क्षुधाषादोषहजादयः शमं । प्रयांति यैस्सत्परिणामहतुभिः ॥ लसत्तपःस्वाध्ययनादिवृद्धिकै- ।
दव्याणि तान्येव वदति साधवः ॥ अर्थ--जिन आहारोंसे क्षुधा तृषादिक दोष एवं वातपित्तादिक विकारोंका उपशमन होकर शुभ परिणाम उत्पन्न होता हो, जिनसे साधुवोंका चित्त तप, स्वाध्याय, ध्यान आदिमें बढता हो उन्हीको सज्जन जन द्रव्य कहते हैं ॥ २॥
द्रव्यगुण. गोवक्त्रस्पृष्टमंभस्तिमितमनलदग्धं पलालं वरण्ड-। क्लिग्नं यज्जंतुदग्धावटगतमिह निस्सारकं पूतिगंधि ॥ त्यक्त्वा संपन्नसस्योच्चयचितमतुषं कोमलं गुप्तबीजं ।
शुद्धं त्यक्त्वामामिश्रं कृषिक इव वपेनेत्ररम्यं सुवर्ण ॥३॥ अर्थ-जिस प्रकार किसान खेतमें बीज बोते समय इन बातोंका ख्याल रखता है कि बोनेका बीज गायका खाया न हो, पानीसे भीगा म हो, अग्निसे जला न हो, भूसा न हो, गीला हुआ न हो, कीडा लगा न हो, छेद से युक्त न हो, निस्सार न हो, दुर्गंधी न हो,