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द्रव्य लक्षण.
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और उत्तम सस्य उत्पन्न होनेके लिए योग्य हो, कोमल हो, शुद्ध हो, अन्नसहित हो, नेत्रको सुंदर दिखता हो, एवं अच्छे वर्णसे युक्त हो । उसी प्रकार साधुवोंके लिए देनेके आहारमें भी उपर्युक्त सभी बातोंका ख्याल रखें । उस प्रकार के योग्य द्रव्यको दानमें देनेवाला ही प्रशस्त दाता है ॥ ३ ॥
अनुचितद्रव्य सर्वद्रव्यमनाणकं त्वनुचितं वस्त्रादि भुक्ताज्झितं । तांबूलीदलपूगबालफलगंधांभाप्रमूनादिकं ॥ सर्व पर्युषितं त्वभक्ष्यघृतवाःक्लिनं च पात्राय नो। दद्यात्सर्वमिदं सदा प्रवितरेद्धृत्याय फेलाभुजे ॥ ४ ॥ अर्थ- भोजनकालमें अनुचित समस्त द्रव्य, उपभोग कर छोडा गया वस्त्रादिक, तथा तांबूल, सुपारी, कच्चा नारियल, फल आदि बनाकर बहुत दिन होनेसे बिगडा हुआ द्रव्य, बहुत दिनका घृत आदि पात्रोंको आहारमें न देना चाहिए। जो पदार्थ उच्छिष्ट खानेवाला सेवकके लिए देनेयोग्य हैं उन पदार्थोको पात्रादान में देना कभी योग्य हो सकता है ? नहीं ॥ ४ ॥
निषिद्धद्रव्य विद्धं विवर्ण विरस विगंध - । मसात्म्यमक्लिन्नमपकमन ॥ स्विनं सबूकमतीव पकं । नेत्राप्रियं यन्मुनये न दद्यात् ॥५॥ __ अर्थ-जो द्रव्य बीघा गया हो, वर्णविकृत हुआ हो, विरस हुआ हो, दुर्गंधसहित हो, शरीरप्रकृतिके लिये अनुकूल न हो, अत्यंत रूक्ष हो, पका न हो, पसीजा हो, अत्यंत पका हो, आंखों को अच्छा नहीं दिखता हो, ऐसे पदार्थोको पात्रदानमें नहीं देना चाहिये॥५॥
पर्युषित. दधिसर्पिःपयोभक्ष्यमायं पर्युषितं मतं । गंधवर्णरसभ्रष्टमन्यत्सवै विगर्हितं ॥ ६ ॥