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चतुर्विधदाननिरूपण
अर्थ-संसार में जो कामुक मनुष्य हैं अथवा धनकी इच्छा करने वाले हैं वह सदा दूसरोंके धन को अपहरण करनेके उपाय जानने गलोंके साथ मित्रता चाहते हैं, चोरी करने की इच्छा रखनेवाले, चोरी के सहायक उपकरण भस्म इत्यादि को जाननेवाले के साथ मित्रता घाइते हैं । ऐसे लोगोंके साथ मित्रता कर उन से उपकरणोंको लेकर एवं उन से धनिकों का घर इत्यादि को विचार कर फिर चोरी करने के लिए जाते हैं । इसी प्रकार वेश्यागमन करने की इच्छा रखनेवाले ऐसे ही दुष्टोंके साथ मित्रता कर उन से उसके सब उपायोंको समझकर ऐसे दुर्मार्गाने प्रवृत्ति करते हैं ॥ १३२ ॥
भामिन्यां लंजिकायां स्वगृहपरिकरान्ग्रंथवित्तं च सर्व। वंचित्वाहत्य दत्वा परिहरति भवास्तं समुल्लाल्य चैत्यं ॥ सौख्यं जीवैहिक संततमनुभवतीत्यात्मधर्म विमुच्य। ग्रंथं धर्म च सर्व परिभवति ऋधैवैहिकामुत्रिका ॥१३३ अर्थ-हे जीव ! सर्ववल्लभा वश्याके अधीन होकर अपने घर से धन को चोरी कर और भी पदार्थीको अपहरण कर उस वेश्या को ले जाकर देते हो, उस नीचकार्यके द्वारा अपने चित्त को भी ठगकर ऐहिक सुखकी वांछा करते हो, इहलोक और परलोकमें मुख को देनेवाले धर्म को भूलकर सब कुछ सुखसे वंचित रहते हो, क्रोधी अपने क्रोधसे जिस प्रकार लोक को अपने विरोधी बना लेता है। उसी प्रकार वेश्यागामी अपना अहित कर लेता है ।। १३३ ॥
यत्रास्ते वनितैका तामाक्रामति च पुंसि धनदानात् ॥
अपवादात्पति भीतेरनुमनुतेऽतो गृहे वसेका ॥१३४॥ अर्थ-जिस घर में अकेली स्त्री रहती है। उसे देखकर कामा१ शृंगाराोचतवित्तानि स्वसुखाय धज्जडः । जारेभ्यो गणिकाभ्यः स्यु परभोगाय तानि ताः ॥