SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३६ ) गुणस्थानक्रमारोह. मृतके समान माना है, बस उस जल तत्ववाले अमृतमय वायुको बारह अंगुल बाहरसे समाकर्षण करके योगी अपने शरीरस्थ कोठेको परिपूर्ण करता है, उसे ही पूरक प्राणायाम कहते हैं । कितने एक योगी पुरुष इसे पूरक ध्यान क्रिया भी कहते हैं, क्योंकि क्षपक श्रेणीमें प्राणायामकी खास आवश्यक्ता हो ऐसा कुछ नियम नहीं, जो कि शास्त्रमें कहा है-चक्रघ्राण प्राणमाकृष्यतेन, स्थानं भित्वा ब्रह्म सूरीश्वराणाम् । स्थूलाः सूक्ष्मा नाडिकाः पूरयेद्यद्, विज्ञातव्यं कर्मतत्पूरकारव्यम् ॥ १ ॥ अब रेचक प्राणायाम कहते हैंनिस्सार्यते ततो यत्नान्नाभिपद्मोदराच्छनैः। योगिना योग सामर्थ्याद्रेचकाख्य प्रभंजनः॥५६॥ श्लोकार्थ-योगी पुरुष योग सामर्थ्यसे नाभिपद्मोदरसे प्रयत्नपूर्वक जो धीरे धीरे वायुको निकालता है उसे रेचक नामा वायु कहते हैं। व्याख्या-योगी महात्मा प्राणायामके अभ्यास बलसे रेचक नामा पवनको नाभिकपल द्वारसे प्रयत्नपूर्वक धीरे धीरे अन्दरसे बाहर निकालता है, उस क्रियाको रेचक ध्यान या रेचक प्राणायाम कहते हैं। पद्मासन लगा कर दोनों हाथोंको कमर पीछेसे निकाल कर बाँये हाथसे दक्षिण तर्फकें और दहणे हाथसे बांये तर्फके पैरके अंगुष्टेको पकड़नेसे वज्रासन होता है। इस वज्रासनसे शरीरको स्थिर करके बुद्धि तथा चित्तको स्थिर करके रेचक नामा पवनको उत्पन्न करता है और योग शक्तिसे उस पवनको नाभि मार्ग द्वारा बाहर निकालता है, इसीको शास्त्रकार रेचक कर्म भी कहते हैं।
SR No.022003
Book TitleGunsthan Kramaroh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijaymuni
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1919
Total Pages222
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy